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[तेरहवां
मल्लिकादेवी।

से एक लबे पत्र को निकाल कर बड़ी उत्सुकता से उसे पढ़ना प्रारम्भ किया। इस बात की जांच उन्होंने उस लिफ़ाफ़े के खोलने के पूर्व ही करली थी कि उसपर किसी भी व्यक्तिविशेष की कोई मुहर न थी।

वस्तु, महाराज उस पत्र को घडी उत्कंठा से पढ़ने लगे, जिसकी नकल अपने पाठकों के चित्तविनोदार्थ हम नीचे अविकल उद्धृत कर देते हैं,-

( पत्र की नकल )

" श्रीमान् !

"आप अपने निज शयनमदिर में, अपनेही पर्यक पर इस पत्र को पाकर अवश्य अत्यंत चकित होगे और साचेगे कि,-'इतने कड़े पहरे. चौकी पर किस व्यक्तिविशेष ने इस पत्र को यहांतक पहुंचाया है!" किन्तु श्रीमान् ! आप इस बात के पता लगाने का उद्योग पदापि न करें! कारण इसका यह है कि जब तक इसका रहस्य मैं स्वय श्रीमान पर न प्रकट करूगा, आप कदापि इस रहस्य के उद्घाटन करने में समर्थन होंगे कि,-'यह पत्र यहागर किसके द्वारा और किस मार्ग से पहुंचाया गया। बस, इस विषय में आप अभी केवल इतनीही बात से संतोष करें कि मैंने स्वयं किसी गुप्तमार्ग से आपके शयनमंदिर में उस समय प्रविष्ट होकर, जब आप अपने मंत्री के सहित यहांसे अन्यत्र पधार चुके थे, इस पत्र को आपके पर्यंक पर रख दिया था।

"अस्तु, अब मैं उस क्रम को प्रारंभ करता हूं, जिसके निमित्त मुझे श्रीमान को इस पत्र के पढ़ने का कष्ट पहुंचाना पड़ा है।

"यह बात मैं बादशाह के उस पत्र को देती बार, जो कि बादशाह ने अपने दून द्वारा श्रीमान के समीप प्रेरण किया था,और उस दूत के मारे जाने पर, वह पत्र किसी कारणविशेष से मेरे हस्तगत हुआ था, निवेदन करचुका हूँ कि,-'मैं भी नव्वाब तुगरलखां की ओर का एक मनुष्य हूं।'

"तो अब यदि कही यह बात प्रगट होजाय फि,-'बादशाही दून के मारे जाने पर किसी अन्य व्यक्ति द्वारा वह पत्र श्रीमान की सेवा में पहुंचाया गया है तो सभव है कि दुराचारी नव्याय का शक मुझी पर होगा और उसका परिणाम यह होगा किया तो मैं जान से मारा जाऊं,