सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६५)

उसका गला छूट गया। लेकिन यदि उसने मुझ से धूर्तता की है तब भी मुझे पछताने की ज़रूरत नहीं क्योंकि रुपये न पाता तो वह मेरी निन्दा करने लगता।

(९) मैंने सुना है कि हिजाज़ के रास्ते पर एक आदमी पग पग पर निमाज़ पढ़ता जाता था। इस सद्‌मार्ग में इतना लीन हो रहा था कि पैरों से कांटे भी न निकालता था। निदान उसे अभिमान हुआ कि ऐसी कठिन तपस्या दूसरा कौन कर सक्ता है। तब आकाशवाणी हुई कि भले आदमी तू अपनी तपस्या का अभिमान मत कर। किसी मनुष्य पर दया करना पग पग पर नमाज़ पढ़ने से उत्तम है।

(१०) एक दीन मनुष्य किसी धनी के पास गया और कुछ मांगा। धनी मनुष्य उसे कुछ देता तो क्या, उलटे नौकर से धके दिलवाकर उसे बाहर निकलवा दिया। कुछ काल उपरान्त समय पलटा। धनी का धन नष्ट हो गया, सारा कारोबार बिगड़ गया। खाने तक का ठिकाना न रहा। उसका नौकर एक ऐसे सज्जन के हाथ पड़ा, जिसे किसी दीन को देख कर वही प्रसन्नता होती थी जो दरिद्र को धन से होती है। अन्य नौकर चाकर छोड़ भागे। इस दुरवस्था में बहुत दिन बीत गये। एक दिन रात को इस धर्मात्मा के द्वार पर किसी साधु ने आकर भोजन मांगा। उस ने नौकर से कहा उसे भोजन दे दो। नौकर जब भोजन देकर