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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१०३

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. “ है । जेल खत्म होनेके बाद मधुकरीके लिओ घूमनेमें शर्म होगी या नहीं होगी, असका निश्चय आज करनेका तुम्हें अधिकार नहीं है। बाहर निकलनेके वक्त दिल कैसा रहेगा, असका आज निश्चय करना भीश्वर जैसा होनेका दावा करने जैसी बात हुी । हम तीनों मानते हैं कि जो कुछ भी 'क' वर्गका · खाना मिलता है, वही मीश्वरार्पण बुद्धिसे खाना तुम्हारा कर्तव्य है । संन्यास धर्म भी यही बताता है। अब रही बात कपड़ोंकी । जेलमें खद्दर ही पहननेका आग्रह करना किसी तरह योग्य नहीं कहा जा सकता। अिस बारेमें हरओक सत्याग्रही कैदीका धर्म है कि जब तक कांग्रेस अिस बारेमें निर्णय न करे, तब तक जेलमें खद्दर पहननेका आग्रह न रखा जाय । और अिस बारेमें भी स्वावलम्बनका तुम्हारा बत है असमें कोी हानि नहीं आती। अिसलिओ मेरी प्रार्थना है कि अपवास छोड़ दो और भूल स्वीकार करो । और खाना शुरू कर दो। अपवासके कारण अक दो दिन दूध ही लेकर या तो फल लेकर रहना अच्छा होगा । यह तो केवल वैद्यकीय दृष्टिसे लिखता हूँ। मेरी अम्मीद है कि हम सबने तटस्थतासे जो राय दी है असके अनुकूल करोगे । . बापूके आशीर्वाद ।" साथमें कवरिंग लेटरके रूपमें भंडारीको लिखा : "Dear Mr. Bhandari, I would like the accompanying letter to be delivered to ... at once, if you approve of the contents. They are nothing but re-exhortation to break his fast, and take ordinary diet. Yours sincerely, M. K. Gandhi “P. S. If ... accepts the advice tendered in my letter to him and breaks the fast, I hope you will issue him milk for one or two days, for it is my experience as a fasting expert that the breaking of fasts on' solid food often results in great harm to the body. M. K. Gandhi" "भाजी श्री भण्डारी, अिसके साथके पत्रकी अिबारत आपको पसन्द हो, तो आप को तुरंत ही दे दीजियेगा । असमें अपवास छोड़कर रोजमर्राकी खुराक लेना शुरू करनेके लिझे दुवारा आग्रह करनेके सिवा और कुछ नहीं है । आपका मो० ० क. गांधी ९८