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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१६०

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सालारे कारवां है मीरे हिजाज अपना, अिस नामसे. है वाकी, आरामें जां हमारा । अिकवालका तराना, बांगे दिरा है गोया होता है जादा पैमा, फिर कारवां हमारा । पूरी हकीकतके बिना हम मनुष्यके साथ कैसा अन्याय कर बैठते हैं, जिसकी अच्छी मिसाल कल पैदा हो गयी । भाजी फूलचन्दका पत्र १८-५-३२ वीसापुरते आया था । असमें १३ लकीरें जिस तरह काटी गयी थीं कि पप ही न सकें । सुपरिटेण्डेण्टने कहा था "जिस काटे हुओ भागमें कोी महत्वकी बात नहीं थी ।" हमने जितनी सी हकीकत पर अन्दाजी घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिये । अगर असने पढ़ा नहीं होता, तो असे किस तरह पता चलता कि काटा हुआ भाग महत्वका नहीं या? और अगर अिसने पता है तो फिर यह कैसा कहा जा सकता है कि यह वीसापुर में ही काटा गया ? वह जानता है कि हम जिस तरह काटे हुओ पत्र पढ़ लेते हैं। अिलिअ असने हमें नसीहत देनेके लिये टाअिपराअिटरसे कटवाया ! अिसके सिवा, वह क्वीनके प्रति भरमाया हुआ आदमी है, वगैरा वगैरा । ये सारे अन्दाज लगानेमें बापू भी शरीक हो गये । सुबह सुपरिटेण्डेण्ट आये तब सुनके साय अचानक ही बात निकलने पर अन्होंने कहा यह काटा तो गया है वीसापुरमें ही, मगर वहाँसे अिस पत्रका अनुवाद सायमें भेजा गया है और अन्होंने मुझे लिखा है कि अितना हिस्सा काटा गया है। असमें दूसरे कैदियोंके नाम थे, भिसलिमे वह हिस्सा काट दिया गया मालूम होता है । अिसमें कुछ था नहीं ।" यह साफदिली हमें बहुत पसन्द आयी, और असके साय' पहले दिन किये हुओ '(भले ही हमारे मनमें ही किया हो) अन्यायके लिमे हम अफसोस करने लगे। जल्दबाजीमें अनुमान लगानेमें साफ दोष भरा है। आज मीराबहन और मणिबहन मिलने आयी थीं। मीरावहनको नहीं मिलने दिया । अन्हें न मिलने देनेका हुक्म तो अिन लोगोंको कल ही मिल गया था, मगर कहनेमें अन्हें संकोच हुआ । आज धीरेसे वापूको चुलाकर कहा । मीराबहनने पत्र लिखा, वह भी नहीं दिया गया । बापूको और मीराबहनको सख्त चोट लगी । बापूने डोअीलको पत्र लिखा मुलाकात न हो, तो मुझे और कोसी मुलाकात नहीं चाहिये ।" " मीरासे. - १ वांगे दिरा = ढोलकी आवाज; २ जादा पगदण्डी । १५७