पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/१९६

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- नहीं ले सकता । सत्याग्रहीको कितनी ही मर्यादायें अपने आप पालन करनी होती हैं । यह वैसी ही मर्यादा है। मेरे विचारोंको सुनने या अपनानेके लिओ दुनिया अधीर नहीं है । हो तो भी जैसे समय धीरज रखनेकी जरूरत है। मैं खुद अपनी रायकी अितनी बड़ी कीमत लगाता भी नहीं हूँ। हरओक रायके लि यह भी नहीं कहा जा सकता कि आज दी हुी राय कल में नहीं बदलूंगा। तुमारे जैसोंको निजी राय दें, जिसमें मुझे हर्ज मालूम नहीं होता। मैं मान लेता हूँ कि मेरे स्वभाव और मेरी खामियों वगेराको ध्यानमें रखकर मैं जो राय दूंगा, झुसकी तुमारे जैते तुलना कर लेंगे। " अब तुम्हारे सवालोंको ढूँ। तुम्हारे कितने ही सवाल न पूछने लायक होते हैं। जिज्ञासुको जिस पर श्रद्धा हो, अससे तात्विक निर्णय कमसे कम माँगने चाहिये । काल्पनिक शंकानोंका निवारण कभी न कराना चाहिये । अपनेको कोसी कदम झुठाना हो और असके बारेमें शक हो, तो अस पर सवाल जरूर पूछा जा सकता है। किसी घटनाके बारेमें पूछना हो, तो सुस वक्त अस घटनाका हाल बताना चाहिये । शुस घटना परते कोमी सार्वजनिक प्रश्न कभी नहीं बनाना चाहिये, क्योंकि जिस तरह प्रश्न बनाते समय असली चीजोंसे कुछ न कुछ रह जानेको संभावना है। भिसलि सार्वजनिक प्रश्नका अत्तर घटना विशेष पर लागू करने में जोखम है।" अक आदमीने श्रीसा और बुद्धके प्रतीकों वाला पत्र लिखकर बताया कि आप ीसा, मुहम्मद और बुद्धके अकेश्वरवाद रूपी साधारण धर्मका प्रचार करें और राजनीतिको छोड़कर धर्म-प्रवृत्तिमें पड़ जायें तो शान्ति हो । असे लिखा: "In my opinion unity will come not by mechanical means but by change of heart and attitude on the part of the leaders of public opinion. I do not conceive religion as one of the many activities of mankind. The same activity may be either governed by the spirit of religion or irreligion, There is no such thing for me therefore as leaving politics for religion. For me every, the tiniest, activity is governed by what I consider to be my religion. " मेरी रायके अनुसार अकता यांत्रिक अपायोंसे नहीं होगी। असके लिओ तो लोकनेताओंका हृदय परिवर्तन होना चाहिये और अनका रवैया बदलना चाहिये । मैं धर्मको अिन्सानकी अनेक प्रवृत्तियोंमेंसे अक नहीं मानता। अक ही प्रवृत्ति धर्म वृत्तिसे भी हो सकती है और अधर्मसे भी हो सकती है। अिसलिओ मेरे लिभे राजनीतिक काम छोड़ कर धर्मकी प्रवृत्ति ग्रहण करनेकी बात है १८५ 15