महादेवभाजी सन् १९१७ के आखिरी हिस्से में गांधीजीके साथ हुओ। तबसे सन् १९४२में अनका देहान्त होने तक अन्होंने अपनी डायरी लिखी है । पच्चीस वरक गांधीजीके साथके सेवाकालमें जेलमें होनेके कारण या किसी दूसरे कारणसे जब जब वे सुनके साथ न रह सके. कुल मिलाकर यह समय बहुत थोड़ा है ~~ अस वक्तके सिवा और सारे वक्तकी पाते अन्होंने अपनी डायरीमें दर्ज की है। गांधीजीके पत्रव्यवहारको, अनके भाषणोंको, व्यक्तियोंक साय हुमी महत्वकी मुलाकातों और बातचीतोंको तथा अिसी तरह चालू घटनाओं पर और विविध विषयों पर अनके विचारों और अद्गारोंको वे नोट कर लेते थे। मशहूर अंग्रेज विद्वान और विचारक जॉन्सनका जो जीवनचरित्र सुनके अन्तेवासी बोसवेलने लिखा है,, बद्द अंग्रेजी साहित्यमें बहुत मशहूर है । जॉन्सनके जीवनके छोटेसे छोटे प्रसंग, और छोटी बड़ी विविध बातों पर जॉन्सनके विचार अिस जीवनचरित्रमें बोसवेलने दर्ज किये हैं। गांधीजीके जीवनचरित्रके बारे में महादेवभाीकी अिच्छा सवाया बोसवेल बननेकी थी। सुनकी यह अिच्छा पूरी करना तो भगवानको मंजूर नहीं था, लेकिन अन्होंने जो सामग्री जमा की थी उस परसे पाठक देख सकेंगे कि अपनी अिच्छा पूरी करनेके लिअ अन्होंने तैयारी करनेमें किसी तरहकी कसर नहीं रखी थी । 'नयजीवन' और 'यंगअिण्डिया में और बादमें 'हरिजन' पत्रोंमें महादेवमाी अपनी डायरियों से समय समय पर प्रकाशित करने लायक सामग्री प्रकाशित करते रहे थे । और जिस तरह गांधीजीके जीवनचरित्रके लिखे अन्होंने काफी मसाला तो प्रकाशित कर ही दिया है। फिर भी कितनी ही मूल्यवान सामग्री अप्रकाशित रह गयी है । अव गांधीजी हमारे वीचमें नहीं रहे, अिसलि नवजीवन ट्रस्टने जितनी भी जल्दी हो सके यह सामग्री जनताके सामने रख देनेका फैसला किया है। अिस सारी सामग्री परसे गांधीजीका विस्तृत और अधिकृत जीवनचरित्र तैयार करनेका काम नवजीवन ट्रस्टने महादेवभाभीके दो साल बाद ही गांधीजीके साथ हो जानेवाले और उनकी तरह ही गांधीजीके निकट सहवासमें रहनेवाले भाजी प्यारेलालको सौंपा है, या यह भी कहा जा सकता है कि भाजी प्यारेलालने अपने अति प्रिय कर्तव्यके रूपमें असे अपने हाथमें ले लिया है । ३
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