पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२००

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पण्डितजी अिज्जतदार कहते हैं, वे या तो रखेल हैं या साधनहीन विधवायें हैं या भाडेकी स्वयंसेविकायें हैं। यह कहा जायगा कि पण्डितजीने जिसमें जोरका थप्पड़ खाया । क्या पण्डितजी अिसका जवाब देकर भूल स्वीकार करेंगे ?" - ववीके दंगे अभी जारी हैं। जिनमें घातक और कायर हमले होनेकी खबरे आती रहती हैं । बापू कहने लगे "जिन बातोंसे ३१-५-३२ मुझे ख्व चोट लगती है, उन्हींको सुनकर मानों मैं खुश हाता हूँ; क्योंकि गंदगी सब अपर आ रही है। जैसा हो रहा है मानो कोसी बड़ी हलनी लेकर बैठा हो और कचरा निकालता ही जा रहा हो। आज आयी हुी डाकके कितने ही नादान और बच्चे-जैसे प्रश्नोंमेंसे अक यह या कि हम तीन मनकी देह लेकर धरती पर चलते हैं और बहुतसी चीटिया कुचल जाती है । यह हिंसा कैसे रुक सकती है ? वल्लभभाीने तुम्त अिसे लिख दीजिये कि पैर सिर पर रख कर चले । कलेक्टर अपनी नियमित मुलाकातके लिभे आया था। (पेरीको छोड़कर) असा विवेकवाला अंग्रेज अफसर मैंने अभी तक नहीं देखा । बापू और वल्लभभाीको कुरसी पर बिठाकर फिर खुद बैठा । दूसरी कुरसी पर दिल्ली अपने बच्चोंको दूध पिलाती हुभी आरामसे सो रही थी। अिसलो मुझे सामनेके स्टूल पर बिठाया । फिर भी जेलर तो खड़े ही थे, अिसलिझे दूसरी कुरसी मँगायी । असके आने पर नेलरको आग्रह करके बिठाया । आते ही हम तीनोंसे हाय मिलाये। जाते वक्त भी मिलाये । बापूसे कहने लगा "आपको समाचार तो क्या हूँ ? क्या दंगेके समाचार आपसे कहने की जरूरत है ? बहुत दुःखद बात है । पूनमें भी शरारत हुी है। अक हिन्दृकी मुखता थी। असने क पीरको रंग कर हिन्दू समाधिका रूप देनेकी कोशिश की थी । मगर असे मैंने फौरन दवा दिया और अिस वातको फैलनेसे भी रोक दिया है। बम्बओमें जो कुछ हो रहा है, युससे कँपकँपी होती है। और अब ता सिर्फ खून पीनेकी बात ही हो रही है । यह खबर आपको देनेकी नहीं है, मगर क्या करूँ ? अब आगे नहीं बढ़ सकती और हमें आशा रखनी चाहिये कि यहाँ कुछ न होगा । आपके लिओ मैं कुछ कर सकता हूँ ? " बापूने कहा "नहीं, मेहरबानी"" सचमुच क्या मैं कोभी सेवा कर ही नहीं सकता ? अच्छा तो सलाम !" अिस आदमीके चेहरे पर अजीब भलमनसाहत थी। -