पण्डितजी भिज्जतदार कहते हैं, वे या तो रखेल हैं या साधनहीन विधवायें हैं या भाडेकी स्वयंसेविकायें हैं। यह कहा जायगा कि पण्डितजीने अिसमें जोरका थप्पड़ खाया । क्या पण्डितजी अिसका जवाब देकर भूल स्वीकार करेंगे ?" बम्बीके दंगे अभी जारी हैं। अिनमें घातक और कायर हमले होनेकी खबरें आती रहती हैं । बापू कहने लगे "जिन बातोंसे मुझे खुब चोट लगती है, अन्हींको सुनकर मानों मैं खुश होता हूँ; क्योंकि गंदगी सब सुपर आ रही है । जैसा हो रहा है मानो कोी बड़ी छलनी लेकर बैठा हो और कचरा निकालता ही जा रहा हो।" आज आयी हुश्री डाकके कितने ही नादान और बच्ने-जैसे प्रश्नोंमेंसे अक यह था कि हम तीन मनकी देह लेकर धरती पर चलते हैं और बहुतसी चीटिया कुचल जाती है । यह हिंसा कैसे रुक सकती है ? वल्लभभाीने तुरत कहा अिसे लिख दीजिये कि पैर सिर पर रख कर चले । कलेक्टर अपनी नियमित मुलाकातके लिभे आया था। (पेरीको छोड़कर) असा विवेकवाला अंग्रेज अफसर मैंने अभी तक नहीं देखा । बापू और वल्लभभाीको कुरसी पर बिठाकर फिर खुद बैठा । दूसरी कुरसी पर दिल्ली अपने बच्चोंको दूध पिलाती हुी आरामसे सो रही थी। अिसलो मुझे सामनेके स्टूल पर विठाया । फिर भी जेलर तो खड़े ही थे, अिसलि दूसरी कुरसी मँगायी। असके आने पर जेलरको आग्रह करके बिठाया । आते ही हम तीनोंसे हाथ मिलाये। जाते वक्त भी मिलाये । बापुसे कहने लगा "आपको समाचार तो क्या दूँ ? क्या दंगेके समाचार आपसे कहने की जरूरत है ? बहुत दुःखद बात है । पुर्नमें भी शरारत हुी है । अक हिन्दुकी मूर्खता थी । असने अक पीरको रंग कर हिन्दू समाधिका रूप देनेकी कोशिश की थी। मगर असे मैंने फौरन दवा दिया और अिस वातको फैलनेसे भी रोक दिया है । बम्बीमें जो कुछ हो रहा है, सुससे कँपकँपी होती है। और अब तो सिर्फ खून पीनेकी बात ही हो रही है । यह खबर आपको देनेकी नहीं है, मगर क्या करूँ ? अब आगे नहीं बढ़ सकती और हमें आशा रखनी चाहिये कि यहाँ कुछ न होगा । आपके लिझे मैं कुछ कर सकता हूँ ?" बापने कहा - "नहीं, मेहरवानी।" सचमुच मैं कोली सेवा कर ही नहीं सकता ? अच्छा तो सलाम ।" अिस आदमीके चेहरे पर अजीब भलमनसाहत थी। क्या
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