पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२११

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"अिन्दुलाल यात करने लगे अपने कल्पना अवतागेको पृज सकते हैं। मैं यह नहीं कहेंगा कि रविवर्माके निगमान धानेका भी निषेध है। भावना मुख्य चीज है।" कल शक्त मार्ग पर यात निकली थी। तब बापू कहने लगे- स्वाथे, तब युटगंककी पुस्तक लाये थे और असे पाने को कहा था। उसमें स्तिनाही भाग अितना भद्दा और विभत्स आया कि मैं असे प न सका। नावती सात में आनी यहाँ तो मैं ठण्डा हो हो गया और पुस्तक छोड़ दी। को मिति नवर्ग:विन्द परते वक्त हुी यी । असका अनुवाद और असपर बाद होनेवा: रिपणियों पढ़ते समय तो असा लगा कि असे पानेकी कोगिन करना बेकार है। आज 'येल दिगु में आया हुआ लात्कीका अक ले गोलमेज समयके मुगलमा दायरेनोफा असा भडाफोड़ करता है। वह परकर सुनाया तो "लाकी मेंकीका योयापन ममल गया दीखता है। मुझे मीकि अमकी और दुनगेंकी ऑग्य बोलनेवाला में ही था, क्योंकि संकीके मार ने अपनी राय कभी छिपायी ही नहीं।" "याप, मेकीके खतका जवाब अब आना चाहिये ।" यार "सोनमा ग?" भुमके लेगके बारे में आपने लिया था सो ।" " पर लिला नाय ?" गल्लामाभी-" अरे या, जिस तरह भूगे तो काम कैसे चलेगा ? कभी तो हमें लगा लेना है न?" दिन मंग पी याद दिलानी। कितनी ही तामील यताची तर बापू गे-"अब गुज कुछ पला स्मरण होता है।" अनमें पाक पितरः भूलने का यह पहला अदाहरण आया सीHि या भूट जानेकी गा. मैं जानता है। मगर अिसे में सामान गा मा गमा पE- पाथ, भाको छोटी मीना याद ती मुंगे अगर आपनाना है। नर भिननी दानं कान मा नना भीर विचाके याद सिया ग? आम आने कहा पाकि दादको सिपा आमय गया गाना आपा' गाद में, और ने पक्षा -fame यानि दोनों gira 5771 77971 1: 7777 की नमः।"