पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/२५८

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" "कोन 1 "मेरे जागते समयका पल भर भी जैसा नहीं जाता जब मैं आपका और आपके साथियोंका खयाल न करता हो¥ और यह सवाल मेरे मनमें न अठता हो कि मैं आपको कितना निराश कर रहा हूँ।" अन्हें पाएने जो पत्र लिखा असमें कहा :

  • You can't disappoint me even if you try. You may not

therefore, allow such a thought to depress you. " आप कितनी ही कोशिश करें तो भी मुझे निराश नहीं कर सकेंगे। अिसलि असे विचार करके अदास न होना चाहिये। रेहाना बेचारी बीमारीसे परेशान है । असे वापूने झुर्दूमें लिखा जानता है तन्दुरस्त रहनेसे अन्छा है या न दुरस्त रहनेसे । नल दमयन्तीकी कथा सुनी है न ? नल बहुत खूबसूरत या, असे बचानेके लिखे खुदाने करकोटक नागको हुक्म दिया । जाओ नलको काटो और भुसे बदसूरत बना दो । जब तो नल घरड़ा गया । आखिरमें असे पता चला कि ये तो खुदाकी न्यामत है। ठोक जैसा ही मैं तुम्हारे बारेमें जानता हूँ । अिसलिझे दर्दका अिलाज करते रहे, लेकिन अच्छे बुरेकी हरगिज फिक्र न करें । तुम्हें हर हालतमें गाना नाचना ही है और अम्माजानकी खिदमतमें रहना है। (फिर गुजरातीमें ) मेरा भाषण पूरा हुआ । तुम्हें तो कुछ भी हो हँसते ही रहना है | अगर तुमने अपना सब कुछ मीश्वरको सौंप दिया है तो शरीर असका है, तुम्हारा नहीं है । रोग भी असीको है, तुम्हें नहीं है । फिर दुःख कैसा ? जो गजल तुमने गुजरातीमें दी है वह समझनी पड़ेगी । तुम मानती हो कि तुम्हें होशियार शागिर्द मिला है । पर थोड़े ही समयमें तुम्हारी आँखें खुल जायेंगी । जो होशियार होगा, वह शिष्य ही क्यों बनेगा ? और वह भी तुम्हारी जैसी अस्तानीका ? अिसलि कोभी हर्ज नहीं । जैसी तुम वैसा मैं । या जैसा मैं वैसी तुम । यह कौन कह सकता है कि तुमने मुझे शिष्यके रूपमें पसन्द किया या मैंने तुम्हें अस्तानीकी गद्दी पर बिठा दिया ? नागने काटा,

~ 'वसन्त 'के फाल्गुनके अंककी आनंदशंकरकी प्रासंगिक टिप्पणीसे वल्लभभामीको और मुझे चिड़ हुी । 'शुन्होंने हमारे युद्धका पिछले महायुद्धके साथ कैसे मुकाविला किया ? प्रजाकी निर्धनताकी और दूसरी बातें कहकर और लड़ाीमें किसी भी पक्षकी भलामी नहीं होती, अिस तरहकी बातें कहकर नाहक क्यों बिनमाँगी सलाह देते हैं ?' वगैरा । बापूने कहा “नहीं, जैसी बात नहीं है । अन्होंने तो यह कहा है कि आप तो अहिंसा भूलने लगे हो । अिसलिझे यह लहामी मामूली लड़ाभीकी तरह होती जा रही है । और यह तो २३५