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पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३२०

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अन्तरमें बहता है " Atman, and who accordingly is completely truthful and pours out his inmost being without any inhibition. Such a man cannot deny any expression of life,' "योगी ध्यानमम होता है । असके जीवनका प्रवाह वह सिर्फ तत्वको पानेके लिअ जीता है। और जिसके लिभे वह सदा आत्मामें ही रमा रहता है । अिसलि वह पूरी तरह सत्यपरायण होता है। किसी भी तरहकी पावन्दीके बिना वह वही कहता है, जो असकी अन्तरात्माको सच मालूम होता है । असा मनुष्य जीवन विकासके किसी भी अंगका निषेध नहीं करता।" Not a single sage of India, not even Buddha, has opposed popular belief in gods. Most of them, above all Shankara, the founder of radical monism, subscribed to this belief themselves. They were so conscious, on the one hand, of the inexpressibility of divinity, and on the other, of the infinite number of possible manifestations, that generally they preferred the manifold expression to the simple one. " हिन्दुस्तानके किसी भी संतने, खुद बुद्धने भी, अनेक देवताओंके बारेकी लौकिक मान्यताका विरोध नहीं किया। बहुतोंने, खासकर शुद्ध अद्वैतके प्रतिपादक शंकरने भी, अिस विश्वासका समर्थन किया है। अक तरफ ीश्वरका वर्णन करनेकी वाणीकी अशक्ति और दूसरी ओर असकी प्रगट विभूतियोंकी अनन्तता -जिसका भान अन्हें अच्छी तरह था। अिसलि अकके बजाय अनेक देवताओंको (अलग अलग विभूतियों के रूपमें) मानना पसन्द किया गया ।" चंडी माहास्य 'मेंसे महादेवीका वर्णन देकर वह हिन्दुओंकी अीश्वर- भावनाको समझाता है: "I am reminded of the famous hymn to Mahadevi in which she, the goddess is revered as Ishwara, the highest being, then as Ganga, then as Saraswati, and again as Lakshmi, where in one verse, after declaring that she dwells in all the beings of the world, in the form of peace, power, reason, memory, professional competence, abundance, mercy, humility, hunger, sleep, faith, beauty, and consciousness, it is added that she also dwells in every creature in the form of error. It seems to me that this multiplicity in its connected form is a better expression of what the pious Indian means, than any single formula could be, however profound." २९७