पृष्ठ:महादेवभाई की डायरी.djvu/३७०

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मी सख्त लिख, तो वह सुख ही जाय । अब मेरी अदारता समझमें आयी? पहलेकी सख्ती और आजकी अदारताके पीछे यही शुद्ध प्रेम काम करता रहा है । वैसे तुम्हारा लिखना ठीक ही है कि मेरी अदारताका अनर्थ करके कोभी लापरवाह बन जाय तो बुरा ही है । असा डर रहता है जिसका कारण दूसरा है । मैं खुद अपने प्रति नरम हो गया हूँ। मेरी पहलेवाली अकड़ जाती रही है। मनचाहा काम शरीर देता नहीं। और जो मैं नहीं कर सकता, वह दूसरोंसे लेनेमें संकोच होता ही है । अिसलि मैंने आश्रममें अक्सर कहा है कि मैं अब आश्रम चलानेके लायक नहीं रहा। आश्रमका चौकीदार जाग्रत और बलवान होना चाहिये । पहले तो मैं काममें सबके साथ खड़ा होता था, अिसलि दूसरोंको मेरे साथ खड़ा होना ही पड़ता था। अब मेरे काम देखनेकी बात नहीं रही। मेरे कहे अनुसार चलने की बात है। अिसलिओ आसपासके वातावरणमें तुम्हें दिलाभी जरूर दीखती होगी । यह सब कुछ तुमने अच्छी तरह समझ लिया है न ? "तुम्हारी सावधानी मुझे पसन्द है । जिस मामलेमें निमुके प्रति कठोर न बनना । पति पत्नी के सम्बन्धोंके बारेमें मेरे विचारों में फर्क जरूर पड़ा है। जिस ढंगसे मैंने चाके साथ बर्ताव रखा, बेशक मैं चाहता हूँ कि अस ढंगले तुम कोभी भी अपनी पत्नियों के साय न रखो । मेरी सरलीसे वाने खोया नहीं, क्योंकि बाको मैंने कभी अपनी सम्पत्ति नहीं समझा । सुनके प्रति प्रेम और सम्मान तो था ही। अन्हें मैं झूची चढ़ी हुी देखना चाहता था । फिर भी वा मुझे नहीं डाँट सकती थी। मैं डॉट सकता था। वाको व्यवहारमें मैंने अपने बराबर अधिकार नहीं दिये थे। और बेचारी बामें वे अधिकार मुझसे लेने की शक्ति नहीं थी। हिन्दू स्त्रियोंमें वह शक्ति होती ही नहीं। यह हिन्दू समाजकी खामी है। अिसलिये मैं चाहता जरूर हूँ कि तुम निमूको अपने बराबर ही स्वतंत्र समझो । मैंने असे हँसीमें अक पत्रमें लिखा था कि असे अपनेको पराधीन मानकर तुम्हें हर बातमें तंग न करना चाहिये। तो असने लिखा- 'रामदास जानते हैं कि मैं पराधीन तो हूँ ही' । भाषा मेरी है, भावार्थ ठीक है । यह पराधीनता मिट जानी चाहिये । निमको नौकर चाहिये तो तुम्हें क्या पूछे ? नारणदाससे माँगे, झगड़ा करना हो तो वह भी करे । यह मैंने तुच्छ अदाहरण दिया है । मगर अिन मामलोंमें असे आजादी होनी चाहिये । तुम्हें व्यभिचार करना हो, तो तुम्हें निम्रका डर नहीं होगा। असका प्रेम तुम्हें रोके, यह दूसरी बात है । अिसी तरह निमको व्यभिचार करना हो तो वह निडर होकर कर सकती है । अक दूसरेका प्रेम दम्पत्तिको पापसे भले ही बचा ले, डर कभी नहीं बचा सकता । यह शिक्षा देना मैं आश्रममें ही सीखा । बाके प्रति मेरा ३५१