काम नहीं कर सका । तीन बार तो मुझ पर निजी हमले हुआ, मगर अभी तक मौजूद हूँ। जिसका मतलब यह नहीं कि विरोधियोंको सुनकी सोची हुी सफलता किसी दिन मिलेगी ही नहीं। मिले या न मिले, अससे मेरा कुछ भी लेना देना नहीं है | मेरा धर्म तो सुनका भला चाहना और मौका पड़ने पर अनकी सेवा करना है। मैंने मिस सिद्धान्त पर भरसक अमल किया है । मेरा खयाल है कि यह चीज मेरे स्वभावमें है । लाखों लोग मेरी पूजा करते हैं, तब मुझे यकावट होती है । मुझे कभी औसा नहीं लगा कि अिस पूजामें मुझे रस आया या यह कि मैं अिसके योग्य हूँ। मगर अपनी अयोग्यताका भान मुझे रहा है। मुझे याद नहीं कि मुझे कभी मानकी भूख रही हो । मगर कामकी भूख रही है। मान देनेवालेसे काम लेनेकी खुब कोशिश की है । काम नहीं मिला तो मानसे दूर भागा हूँ। मैं कृतार्थ तो तब हो , जब मुझे जहाँ पहुँचना है वहाँ पहुँच जाझू । लेकिन जैसा दिन कहाँ भाग्यमें है, वगैरा वगैरा । "दुनियाके सामने खड़े रहनेके लिझे घमण्ड या गुस्ताखी पैदा करनेकी जरूरत नहीं है । मीसामसीह दुनियाके खिलाफ हुभे; बुद्ध भी अपने युगके विरुद्ध हु । प्रह्लादने भी असा ही किया । ये सब नम्रताकी मूर्ति थे। अिसके लिये आत्मविश्वास और भगवान पर श्रद्धा चाहिये । घमण्डमें आकर विरोध करनेवाले अन्तमें गिरते ही हैं। तुम्हारा घमण्ड और तुम्हारा क्रोध की बार केवल ढोंग होता है । परन्तु यह ढोंग भी भद्दा है। अिससे अक्सर व्यर्थ गलतफेहमीके कारण पैदा होते हैं। जैसा न होनेके लिओ अिन्सानको बहुत सावधान होकर चलनेकी जरूरत रहती है । अन्त समय तक अकेले टिके रहने की शक्ति में अत्यंत नम्रताके बिना असंभव मानता हूँ। और शक्ति आयी हो तभी वह भी असली चीज मानी जाती है । जिसकी परीक्षा अिसीमें है। बहुत लोग जो वहादुर माने जाते हैं वे सचमुच बहादुर थे या नहीं, यह परखनेका समाजको मौका ही नहीं मिला ।" . आज सवेरे धूमते वक्त बापूने कहा ." निर्णय आनेवाला हो या कुछ भी होनेवाला हो, क्या कभी जैसा हुआ है कि मुझे नींद न आये ! परन्तु आज रातको यही हुआ । अिस निर्णयके मुझे सपने आये १३-८-०३२ या असीके विचार आते रहे । जाग झुठा और विचार आते रहे । अन्तमें तारे देखने में जी लगाकर सो रहा और विचार किस समय बन्द हो गये, जिसका पता नहीं चला। जिसका कारण यह है कि मिस निर्णय पर मेरे आगेके कदमका आधार जो है ?" ३५४
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