पत्र तो जितने लिखने चाहिये थे, उनके लिखने में जल्दी की ही गयी। रातको मैक्डोनल्डको पत्र लिखना शुरू किया । -. - सवेरे पत्र पूरा किया और हमसे कहा "कातना छोड़कर अिस पत्रको पढ़ लो तो अिसे तुरन्त भेज दिया जाय।" हमने पद १८-८-३२ लिया । वल्लभभाभीने कहा "जिसमें निर्णयके दूसरे भागोंके बारे में कुछ नहीं कहा जिसलिझे यह अर्थ तो नहीं होगा कि यह सब आपको पसन्द है ?" बापूने कहा "नहीं। मेरे विचार कहाँ छिपे हैं ? फिर भी आप चाहते हो तो अक पैरा और जोड़ दें। अलबत्ता अिसमें दलील लानी पड़ेगी और दलील मुझे अिस पत्रमें लानी नहीं है । दलील जो भी करनी थी, वह सेम्युअल होरके नामके पत्रमें हो चुकी है।" मैंने कहा "सिर्फ अितना ही लिखिये कि सारे निर्णयके खिलाफ मेरी आत्मा विद्रोह करती है । मगर अिसका अमुक भाग असा है, जिसे रद्द करानेके लि मैं प्राणों की बाजी लगा देना अपना फर्ज समझता हूँ। बापू कहने लगे. "नहीं, मुझसे असी तुलना नहीं हो सकती। और तब तो जरूर यह माना जायगा कि अिसे सारा निर्णय रद्द कराना है, मगर जिसका बहाना ढूँया है । यह सच है कि सारा ही रद्द कराना है, मगर सब बातें शामिल की जा सकती हैं या नहीं, जिस पर रातको थोड़ी देर विचार करके यह भिरादा छोड़ दिया।" शामको यही बात निकली "मुझसे दूसरी बातें मिलाी ही नहीं जाती । वह तो धर्मके साय राजनीतिको मिला देने जैसा होगा । और यहाँ दोनों मुद्दे अलग हैं।" फिर कहने लगे वाते मैंने अपने मनमें बार बार विचार ली है । अभी जो बातें सूझ रही हैं अनमेंसे अक भी मेरे दिमागमें न आयी हो सो बात नहीं है। ये सब विचार करके ही मैं अिस फैसले पर पहुँचा हूँ। मुसलमानों और दूसरे लोगोंको अलग मताधिकार दिया गया है, अससे भयंकर परिणाम होनेवाले हैं । यह सब सच है कि अंग्रेजोंसे मिलकर सब जगह ये लोग हिन्दुओंको दवायेंगे । परन्तु मैं अिन सबसे निपट लेनेकी अम्मीद रखता हूँ । लड़ानेवाला दल अक बार चला जाय, तो फिर दिन सबसे निपटा जा सकता है | मगर अछूनोंके साय तो मैं और किसी तरह निपट ही नहीं सकता । मैं येचारे अछूलोंको किस तरह समझा ? बना भागे दुःख आ पड़े तब अपने पर सारा संकट ले लेना क्या आजकी नमी बात है १ सुधन्वा तेलकी कहाीमें पड़ा था, और प्रहाद घधकते खम्मेसे लिपटा था, वह किस तरह ? त्वराज मिल जानेके बाद भी कभी सत्याग्रह करने तो होंगे ही। कभी बार असा जीमें आता है कि स्वराजके बाद कालीघाट पर जाकर सत्याप्रद शुम किया जाय और धर्मके नाम पर होनेवाली.दिमाको ."सब
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