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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/११०

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

. उस समय पारिक्षितोका नाश हो गया भारतमें भी यह कहीं नहीं कहा गया है होगा। परन्तु उनके ऐश्वर्य और जीवन- कि द्रोणाचार्यको मारनेसे ब्रह्महत्या दुई। चरित्रकी बातें लोगोंके स्मरणमें ताजी ऐसा न हो तो भी, जब हम देखते हैं कि. अवश्य रही होगी। इसमें सन्देह नहीं ब्रह्महत्याका विस्तारपूर्वक वर्णन. शतपथ कि वंश सहित उनका नाश किसी विल: ब्राह्मणमें नहीं है, तब उस ब्रह्म हत्याका क्षण रीतिसे हुआ है। परन्तु उक्त प्रश्न- सम्बन्ध भारती-युद्धके साथ नहीं लगाया के आधार पर यह अनुमान नहीं किया जा सकता। सारांश, धेयरका यह कथन जा सकता कि पारिक्षितोका अन्त किसी बिलकुल गलत है कि भारती-युद्धमें जन- भयानक रीतिसे हुआ है । बृहदारण्य- मेजय प्रधान था और उस युद्धमे उसका में जब यह प्रश्न किया गया कि पारिक्षित नाश हुश्रा। कहाँ हैं, तब यह उत्तर भी दिया गया है भारती-युद्धके सम्बन्धमें और भी कि "ते यत्राश्वमेधायाजिनो लोगोंकी अनेक कल्पनाएँ हैं। एक जर्मन यान्ति"इस उत्तरसे उक्त प्रश्नका पण्डित कहता है कि मूल भारत-संहिता सच्चा तात्पर्य और रहस्य समझमें श्रा छोटी सी कथा थी: वह कथा बौद्ध-धर्मीय जाता है। पारिक्षित अर्थात् जनमेजय और थी और उसका नायक कर्ण था: भागे उसके तीन भाईयोंने हालमें ही जो अश्व- जब ब्राह्मण धर्मकी प्रबलता हुई तब मेध किये थे वे लोगोंकी आँखोंके सामने ब्राह्मण लोगोंने कृष्ण परमात्माके भक्त थे। अतएव उक्त प्रश्नमें इस रहस्यको अर्जुन और उसके भाइयोंको प्रधानता जाननेकी इच्छा प्रकट हुई है कि अश्व-दी; और इस प्रकार श्रीकृष्ण अथवा मेध करनेवालेकी कैसी गति होती है विष्णुकी महिमा बढ़ाई गई। टालबाइस क्या वह ब्रह्मज्ञानीकी ही गति पा सकता ह्वीलरका कथन है कि पागडवोंके युद्धके है? और इस रहस्यकी ओर ध्यान समय श्रीकृष्ण नहीं थे: उनका नाम पीछे- देकर ही याज्ञवल्क्यने उत्तर दिया है कि से कथामें शामिल कर दिया गया है। अश्वमेध करनेवाला वही गति पाता अन्य कुछ लोग कहते है कि इस युद्ध में है जो अध्यात्म विद्यासे प्राप्त होती है। पाण्डवोंकी विजय न होकर दुर्योधनकी यहाँ न तो पारिक्षितोकी ब्रह्महत्याका हुई। स्मरण रहे कि ये सब कल्पनाएँ ही उल्लेख है और न वह प्रश्न-कर्ताके ही युद्धके न होनेके विषयमें नहीं हैं, तथापि मनमें है। शतपथ ब्राह्मणके किसी इनका खण्डन किया जाना चाहिये। दूसरे वचनमें जनमेजय पारिक्षित द्वारा श्रीकृष्ण और पाण्डवीका पारस्परिक की हुई जिम ब्रह्महत्याका उल्लेख है, सम्बन्ध किसी प्रकार अलग नहीं किया उसके सम्बन्धमें यह नहीं बतलाया गया | जा सकता। यह नहीं माना जा सकता कि वह ब्रह्महत्या कैसे हुई । ब्रह्महत्याका कि उनका सम्बन्ध मूल भारतमें न होकर सम्बन्ध भारती-युद्ध के साथ कुछ भी नहीं महाभारतमें पीछेसे शामिल कर दिया है, क्योंकि उस युद्ध में ब्रह्महत्या हुई ही गया है। इतना ही नहीं, किन्तु यह मत नहीं। द्रोणाचार्य ब्राह्मण थे, पर वे क्षत्रिय- ऐतिहासिक दृष्टिसे भी गलत है। श्रीकृष्ण का व्यवसाय स्वीकार कर रणभूमिमें खड़े और पाण्डवोका परस्पर सम्बन्ध मेगाखि- हुए थे, इसलिये सिद्ध है कि ऐसे ब्राह्मण- नीजके ग्रन्थसे भी स्पष्ट देख पड़ता है। को युद्ध में भारना ब्रह्महत्या नहीं है। महा- मेगास्थिनीजने हिन्दुस्थानके प्रसिद्ध