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महाभारतमीमांसा
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ष्ठिरने यह श्लोक दुर्बोधनके वचन या नाम कैसे पाया । प्राचीन समयमें प्राधार पर कहा है:- हिन्दुस्थानका कोई स्वतन्त्र नाम नहीं ब्रवीमि सत्यं कुरुसंसदीह था। बाहरके लोगोंने उसे हालमें हिन्दु- तवैव ता भारत पंचनद्यः । स्थान नाम दिया है। पुराणोंमें कहा है अर्थात् दुर्योधनने युधिष्ठिरसे कहा कि प्राचीन समयमें हिन्दुस्थानको भरत- कि तुम्हारे बनवास और अज्ञातवासको खण्ड कहा करते थे, परन्तु महाभारतमें पूरा कर चुकने पर-"इस कौरव सभामें वह नाम नहीं है। यह वर्णन पाया जाता मैं सत्य कहता हूँ कि, हे भारत, यह पञ्च- । है कि पाराडघोंने सब देश जीत लिये थे। नंद-देश तुम्हारा ही होगा।" यहाँयुरोपियन । यद्यपि यह घटना पीछेकी मानो जाय. पण्डितोंका यह प्रश्न है-जब कि पागडवो- तथापि इसमें सन्देह नहीं कि पाण्डवोने का राज्य इन्द्रप्रस्थमें था, जो पञ्जाबके पाब देश भी जीत लिया था। भारती- बाहर यमुनाके तीर पर था, और जब कि कथाको प्राचीनताको मान लेने पर कह उन्होंने यही राज्य तमें खो दिया था, सकते हैं कि उस समय पञ्जाब देश ही तब उनके वनवास और अज्ञातवासकी हिन्दुस्थानका मुख्य भाग था। पाण्डव प्रतिक्षाको पूरा कर चुकनेपर उन्हें पञ्जाब- उस समय सार्वभौम गजा थे। ऐसी का राज्य लौटा देनेकी यह बात कैसे दशामें यदि उनकी प्रतिमा सिद्ध न होती कही गई ? इन्द्रप्रस्थके राज्यके लौटा देने तो उनका सब साम्राज्य कौरवोंको मिल की बातको छोड़कर यहाँ पञ्चनद देशकी जाता, अर्थात् सारा हिन्दुस्थान कौरवों- बात क्यों कही गई ? यहाँ पञ्चनद देशका की अधीनतामें चला जाता। इसी दृष्टिसे क्या सम्बन्ध है ? इससे उन पगिडतो- : यहाँ पञ्चनद देशका उल्लेख किया गया । का यह अनुमान है कि-"श्रारम्भमें है: अर्थात मुख्य भागके निर्देशसे यहाँ पञ्चनद देशके गजा भारत-लोगों और समस्त साम्राज्यका निर्देश किया गया कुरु देशके राजाओंमें घृत होकर लड़ाई है। इन्द्रप्रस्थ राजधानी भी उसीमें शामिल हुई होगी और पागडव बादमें शामिल हो गई । वर्तमान समयमें भी दिल्ली-राज- कर दिये गये होंगे” (हाप्किन्स पृष्ठ : धानी पञ्जाबमें ही शामिल है। पञ्जाबमें ३७४)। उनका यह भी प्रश्न है कि इस भिन्न भिन्न राजा थे, पर वे सब पाण्डवों- ब्रन्थको महाभारत नाम कैसे दिया गया ? ! के अङ्कित थे। तात्पर्य यह है कि पञ्चनद जान पड़ता है कि मूल युद्ध में भारत देशसे यहाँ भरतखरा उके साम्राज्यका बोध लोग ही थे, इसलिये इस ग्रन्थको भारत होता है। अथवा इस कृट श्लोकका अर्थ और महाभारत नाम दिये गये होंगे। भिन्न रीतिसे भी किया जा सकता है। स्वीकार करना चाहिये कि यहाँ पञ्च- : 'पञ्चनद्यः' शब्दसे पञ्जाबकी पाँच नदियाँ मंद देशका जो उल्लेख है वह सौतिके न समझकर हिन्दुस्थानकी मुख्य पाँच कट श्लोकोमेसे एक उलझनकी बात है। नदियाँ समझी जायँ । सिन्धु, सरस्वती, परन्तु इस एक ही श्लोकके आधार यमुना, गङ्गा और सरयू, इन पाँचौ नदियों- पर समस्त भारतकी कथाको उलट को मिलाकर उस समयका हमारा मारत पलट देना उचित नहीं होगा । और देश बना था। अस्तु: यदि यह मान लिया इस बातका स्पष्टीकरण भी हो सकता जाय कि पहले भरत और कुरूके ही बीच है कि दुर्योधनके कथनमें पञ्चनद देशका झगडा था, तो भी यह सम्भव नहीं कि