पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/११४

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महाभारतमीमांसा

बर महाभारतमीमांसा बार पाई जाती है। कुछ लोगोंका पोछेसे शामिल की गई वह क्यों और कैसे अनुमान है कि कुरु-पांचालोका युद्ध की गई। पांडवों से युधिष्ठिरका नाम होकर अन्तमें दोनोंका एक राज्य हो | पाणिनिमें पाया जाता है। इससे मानना गया । यह अनुमान भी ठीक हो सकता पड़ता है कि पाणिनिके समय पांडु है। परन्तु किसी वैदिक साहित्य- भारत थे। पाणिनिका समय ईसवी ग्रन्थमें आर्य लोगोंके सम्बन्धमें कुरु- सन्के पहले ८००के लगभग है । यह भारतकी जोड़ीका उल्लेख नहीं पाया प्रकट है कि इस समयसे लेकर ईसवी जाता । महाभारतके किसी प्राचीन सन्के पहले ३०० तक यह कथा नई मा नये भागमें कुरु-भारतोंका उल्लेख उत्पन्न नहीं हुई। ऐसी दशामें उक्त कल्पना नहीं है। अर्थात् मूल प्रन्थमें कुरु-भारतोंके करनेवाले भी इस चक्करमें पड़े हुए यडके होनेकी यह कल्पना निराधार है। देख पड़ते हैं, कि उस समयके बाद. यह दोनोंके युद्धका वर्सन करनेवाले ग्रन्थका कल्पना कैसे शामिल कर दी गई होगी। साम.दोनोंके नामकी दृषिसे. चरितार्थ ! जब हम इस बात पर ध्यान देते हैं कि होना चाहिये । (जैसे फ्रांको-जर्मन वार यह कल्पना ही निर्मूल तथा निराधार वगैरह नाम हैं। ) भारत शब्दमें युद्ध है, तब उसके चक्करमें पड़े रहनेकी भी करनेवाले दोनों पक्षोंका समावेश हो कोई आवश्यकता नहीं रह जाता । इस जाता है, अर्थात् कुरु-पांडव अथवा कुरु- प्रकार निश्चय हो गया कि पांडव काल्प- पांचाल दोनोंका समावेश हो जाता है। निक नहीं हैं, उनकी कथा पीछेसे शामिल अतएव 'भारत' वा 'महाभारत" नाम ही नहीं की गई है और भारती युद्ध भी इस ग्रन्थके लिये उचित जान पड़ता है। काल्पनिक नहीं है। अब इस प्रश्नपर यह बात उक्त कल्पना करनेवाले भी विचार किया जाना चाहिये कि भारती- नहीं बतला सकते कि पांडवोंकी जो कथा युद्ध कब हुआ।