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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१२३

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  • भारतीय युद्धका समय *

-- 7 उससे एक बात तो अवश्य सिद्ध होती है। सिवा दूसरा प्राधार नहीं है । दीक्षित. यह यह है कि उसने इस संख्याको किसी (पृष्ठ ११८ में) कहते हैं:-"वराहमिहिरने न किसी आधारसे निश्चित किया होगा। सप्तर्षिचारमें कहा है कि सप्तर्षियोंमें गति. ऐसी संख्या निश्चित करनेके लिये दन्त- है: और वे एक एक नक्षत्रमें १०० वर्षों कथाका और मुख्यतः वंशावलीका तक रहते हैं। इसी धारणाके आधार पर साधन होना चाहिये। कल्हणके ग्रन्थसे यह समय निकाला गया है।" युधिष्ठिरः यह मालूम होता है कि इस प्रकारकी के समयमें सप्तर्षि मघा नक्षत्रमें थे और वंशावली काश्मीरमें भारतीय युद्धके अाजकल भी वे मघामें ही हैं । सप्तर्षि समयसे प्रचलित थी। अर्थात्, निश्चित प्रत्येक नक्षत्र में १०० वर्षांतक रहते हैं, है कि यह संख्या राजवंशावलीके आधार इससे यह निष्पन्न होता है कि आजतक पर स्थिर की गई: और इस दृष्टिसे इस युधिष्ठिरको २७०० वर्ष हो चुके। परन्तु संख्याका बड़ा भारी महत्व है। शक- सप्तर्षियोंमें तो कोई गति ही नहीं है, पूर्व ३१७६ की जो संख्या शककालके पार- इससे उक्त समयका कोई अर्थ नहीं हो म्भमें वंशावलीके अाधार पर स्थिर की सकता। इसी तरह गर्ग और वराहके बत- गई थी, वह भी इसी तरहकी वंशावलीके लाये हुए समयका भी कोई अर्थ नहीं है। आधार पर स्थिर की गई होगी। गर्गके , दीक्षितका कथन है कि यह "गर्ग शक- वचनमें किसी मनमाने राजाका नाम कालके श्रारम्भ होनेके अनन्तर एक दो समझकर वराहमिहिरने भूल की: परन्तु शताब्दियों में कभी हुआ होगा; उसे. सन् ईसवीके ३१०१ वर्ष पहलेका समय सप्तर्षि मघा नक्षत्रके निकट दिखलाई ही, वराहमिहिरको छोड़ अन्य सब ज्योति- पड़े, इसलिये उसने यह स्थिर किया कि षियोंके द्वारा ठहराया हुआ भारतीय युद्धका शक कालके प्रारम्भमें युधिष्ठिरको २५२६ समय सर्वमान्य दिखलाई पड़ता है । हम वर्ष हो चुके।” परन्तु यह मत मानने योग्य पहले यह देख ही चुके हैं कि इसके सिवा ' नहीं है । २५२६ की निश्चित संख्या मेगास्थिनीज़ने चन्द्रगुप्ततक मगधवंशकी कल्पना कैसे ठहराई जा सकती है ? यह जिन पीढ़ियोंका वर्णन किया है उस वर्णन- गणितका विषय है, इसलिय इसमें अन्दा- से भी इस निश्चित समयको सबल सहारा ज़की बातोंका बिलकुल समावेश नहीं हो मिलता है । सारांश यह है कि सन् सकता: और कोई ज्योतिषगणितकार ईसवीके ३१०१ वर्षके पहलेका समय ही निराधार तथा काल्पनिक संख्याकी भारतीय युद्धका समय सर्वमान्य सिद्ध सृष्टि नहीं कर सकता । यदि सप्तर्षियोंका होता है। चक्कर २७०० वषोका मान लिया जाय, यहाँ कुछ श्राक्षेपोंका भी उल्लेख कर तो प्रश्न है कि उनमें १७४ वर्ष क्यों घटा देना चाहिये । कहा जाता है कि जैसे दिये गये ? दीक्षितने यह तो नहीं ईसवी सन्के पहले ३१०१ वर्षके समयको बतलाया है कि जब समर्षि गर्गको मया आर्यभट्टने केवल कल्पनाले निश्चित किया नक्षत्रमे दिखाई पड़े, तब घे उसे शक- है, उसी प्रकार दीक्षितका कथन है कि संवत्के बाद १७४ वें वर्षमें दिखाई पड़े शक-संघसके पहले २१२६ वर्षके समयको थे । और, यह भी नहीं माना जा सकता गर्गने. अपनी कल्पनास निश्चित किया कि यह समय शक १७४ वर्षों बाद है। परन्तु इस प्राक्षपको भी कल्पना. निमित किया गया था। ऐसा कहनका