--सहामास्तमीमांसा... प्राचीन देशोंके इतिहासके उदाहरणसे बौद्ध और यवन राजाओंके होनेके कारण सिद्ध होता है कि यदि हिन्दुस्थानमें भार- प्राचीन क्षत्रियोंकी वंशावलियाँ मष्ट हो गई तीय प्राोंके पहले ऐतिहासिक राजा होंगी। इन लोगोंका और इनके धर्मोका, पाणसव तथा श्रीकृष्ण सन् ईसवीके पहले जाति-प्रथाके विरुद्ध, कटाक्ष रहने के ३१०१ वर्षमें राज्य करते थे, तो इसमें कारण क्षत्रियोंकी बंशावलियोंको सुरक्षित आश्चर्व करनेकी कोई बात नहीं है। रखनेवाले सूत, पुराणिक आदिका, इस भेगास्थिनीज़की बातों पर दूसराआक्षेप अवधिमें नाश हो गया होगा । अर्थात यह किया जाता है कि जिस अवधिमें पुराणों में बतलाई हुई पीढ़ियों और वर्ष- श्रीकृष्णतक १५ पीढ़ियाँ होती हैं, उसी संख्याकी बातें सब अंदाज़सं दी गई होगी, अवधिमे मनुसे पाण्डवोतक महाभारतमें बल्कि बौद्ध और जैन लोगोंके मतोंके ३५ पोढ़ियाँ दी हुई हैं। परन्तु इसमें भी आधार पर लिखी हुई होगी । कारण यह आश्चर्य करने योग्य कोई बात नहीं है, है कि बुद्ध के समयसे अथवा जिन महा- क्योंकि ये पीढ़ियाँ कलियुगके पहलेके वीरके समयसे और इनके थोड़े समयके राजाओंकी हैं, और उनकी वर्ष-संख्या भी पहले जो राजा हो गये, उनके नाम और बहुत बड़ी मानी गई है। ये राजा द्वापर- वर्ष-संख्याएं पुराणोंमें अधिकांशमें सम्भव के और उसके भी पहलके थे अतएव एवं मिलती हुई दी गई हैं: और इससे उनको भिन्न भिन्न शाखाओंमें १५ और ३५ । पूर्वकालकी बातें केवल काल्पनिक मालम पीढ़ियोंका होना सम्भव है । अकेले भीष्म- होती हैं। इसी विषयका विस्तारपूर्वक के सामने विचित्रवीर्य, पाण्डु और युधि- विचार करना आवश्यक है। ष्ठिरादि पाण्डवकी तीन पीढ़ियाँ हो गई पुगणों में वे सब वर्णन भविष्यरूपस थीं। अर्थात् , बड़ी आयुर्मर्यादावालेकी दिये गये हैं । इसमें सन्देह नहीं कि ये शाखामें कम पीढ़ियोंका होना सम्भव है। वर्णन उन राजाओंके हो जानेके बादके मानवी पीढ़ियोंके शुरू होने पर हमने जो हैं। उनमें वर्ष-संख्यातक दी हुई मिलती १३८ पीढ़ियाँ ली हैं, उनकी भिन्न भिन्न : है। इससे भी यह निर्विवाद है कि ये शाखाओंमें दीर्घायुषी और अल्पायुपी उन राजाओंके बादके हैं । इस रीतिसे राजाओकी एकत्र वर्ष-संख्यामें सरसरी । विचार करने पर मालुम होता है कि प्रथम तौरसे प्रत्येकके लिये २० वर्ष रखना ही : आंध्रांततक स्वकीय राज्य-संख्या दी हुई है। ठीक होगा। इन सब बातोंका विचार | उसके बाद यवन श्रादि पर-राजाओंका करने पर यही मानना चाहिये कि चन्द्र-। एकत्र समय बतला देनेसे सब गड़बड़ी गतके समयमें मेगास्थिनीज़को हिन्दुस्थानमें हो गई है । तथापि हम बार्हद्रथ वंशका जो बातें मालूम हुई, वे अत्यन्त पुरानी और अधिक विचार करेंगे, क्योंकि इसके विश्वसनीय हैं। बाद मगधमें होनेवाले वंशोका हाल पुराणों में बतलाई हुई पीढ़ियांकी बौद्ध ग्रन्थोंसे भी मिल सकता है। यह दशा इससे उलटी है। पहले कहे अनु- हाल वायु पुराणमें अधिक विस्तारपूर्वक सार पुराणोंकी बाते अत्यन्त अर्वाचीन इस तरह दिया गया है। प्रद्योत वंशके अर्थात् सन् ४०० ईसवीके लगभगकी पाँच राचा हुए। विष्णुपुराणमें उनकी हैं। यानी मेगास्थिनीज़क मास-बार सो वर्ग संख्या है। परन्तु प्रत्यक के बादकी हैं । इस अवधि शुद्ध, 'मजाको भी वर्ष-संख्या दी गई है जिनका
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