सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/१३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
११०
महाभारतमीमांसा

2 महाभारतमीमांसा

श्रेय शङ्कर' बालकृष्ण दीक्षितको है जिसे वे नक्षत्रोंका उदय देखा करते थे। सम्पाल- उन्होंने भारतीय ज्योतिष शास्त्र-सम्बन्धी बिन्दुके पीछे हट जानेकै कारण, आजकल अपने इतिहास-ग्रन्थमें दिया है। उन्होंने कृत्तिका पूर्वमें नहीं उदय होती। कृतिका- अँग्रेज़ीदाँ पाठकोंके सन्मुख भी अपनी को अाजकलकी स्थितिसे उस समयका इस खोजको “इण्डियन एन्टिकेरी” नामक काल निश्चित किया जा सकता है जब मासिकपत्रके द्वारा उपस्थित किया है, कि वह विषुववृत्त पर थी। वह कालसन् परन्तु उसका उत्तर आजतक किसीने ईसवीके २६६० वर्ष पूर्व पाता है। इसे नहीं दिया । अपनी खोजके सम्बन्धमें स्थूल रोतिसे ३००० वर्ष पूर्व मान लिया दीक्षित कहते हैं:-"यह बात निश्चयके जाय तो कोई हर्ज नहीं। "गणित करके साथ सिद्ध की जा सकती है कि शतपथ- मैंने (दीक्षितने ) यह भी देखा है कि उस ब्राह्मणके कमसे कम उस भागका समय समय सत्ताइस नक्षत्रों से दूसरा कोई जिसमेसे नीचे लिखा हुआ वाक्य लिया नक्षत्र विषुववृत्त पर नहीं था, अर्थात् गयां है, सन् ईसवीके लगभग ३००० वर्ष पूर्वमें उदय नहीं होता था। यह वर्तमान- पूर्व है । वह वाक्य इस प्रकार है:- . कालका प्रयोग है-भूतकालका महीं- कृत्तिकास्वादधीत । एता ह वै प्रान्ये : कि कृत्तिका पूर्व दिशासे च्युत नहीं होती। दिशी न च्यवन्ते सर्वाणि ह वा अन्यानि अर्थात् , इस वाक्यमें पूर्व संमयकी बात नक्षत्राणि प्राच्यै दिशश्ववन्ते। नहीं बतलाई गई है। मेरी रायमें इस (अर्थ:-कृत्तिका नक्षत्र पर अग्निका विधानसे निश्चयपूर्वक सिद्ध होता है, कि माधान करना चाहिये । निश्चित बात है। यह वाक्य सन् ईसवीसे पूर्व ३००० वर्षोंके किं कृत्तिका पूर्व दिशासेच्युत नहीं होती। इस ओर नहीं लिखा गया।" (इण्डियन बाकी सब नक्षत्र च्युत हो जाते हैं ।) एन्टिकेरो, भाग २४, पृष्ठ २४५) इस वाक्यसे, उस समयमें, कृत्तिकाका दीक्षितके उपर्युक्त कथनका खण्डन ठीक पूर्वमें उदय होना पाया जाता है। आजतक किसीने नहीं किया। यह कथन साधारणतः लोगोंकी धारणाके अनुसार इतने महत्वका है कि उसे पाठकोंको संभी नक्षत्र पूर्व में उदय होते हैं: परन्तु स्पष्ट समझा देना चाहिये। कृत्तिका नक्षत्र ऊपरके वाक्यमें कृत्तिकाके उदय होनेमें क्रान्तिवृत्तके उत्तरमें है और वह स्थिर और अन्य नक्षत्रोंके उदय होनेमे अन्तर है। यानी उसका शर कभी न्यूनाधिक बतलाया गया है। इससे और च्यव् धातु- नहीं होता। जैसे आजकल कृत्तिकाका से, इस वाक्यका यह अर्थ मालूम पड़ता उदय पूर्व बिन्दुसे हटकर उत्तरमें होता है कि उदय होते समय कृत्तिका ठीक है, वैसे पूर्व कालमें नहीं होता था जब कि पूर्व बिन्दुमें और अन्य नक्षत्र इस सम्मात-बिन्दु किसी दूसरी जगह था। बिन्दुके दाहिने अथवा बाएँ ओर दिखाई जितने तारे विषुववृत्त पर रहते हैं केवल पड़ते थे। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका उतने ही ठीक पूर्वमें उदय होते हैं, और यह अर्थ है कि जिस समय यह वाक्यं सम्पान-बिन्दुके पीछे हट जानेके कारण लिखा गया, उस समय कृत्तिका ठीक तारागण विषुववृत्तसे छूट जाते हैं। नीचे विषववत्त पर थी। इस वाक्यसे यह भी की प्राकृतिसे पाठकोके ध्यानमें यह बात दिखाई पड़ता है, कि वैदिक ऋषियोंने श्रा जांचगी कि ऐसी स्थिति क्यों हो पूर्वमिन्दुका निश्चय कर लिया था और जाती है:-