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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

- करना अन्यायपूर्ण होगा। ऐसा करना मान चान्द्र वर्षको और हिन्दसौर वर्षको उपर्यत लकडीकी गाडीके उदाहरणके मानते हैं। ऐसी दशामें मीयाद-सम्बन्धी समान अन्यायपूर्ण होगा; अथवा ठीक कायदेमें स्पष्ट लिखा है कि मीयाद और वैसा ही होगा जैसा महमूदने किया मिती अँरेगज़ी रीतिसे मानी जायमी। था। महमूदगजनवीने फिरदौसी कवि- घृतके समय धूत खेलनेवालोंमें इस प्रकार को प्रत्येक कविता-पंक्तिके लिये एक वर्ष-सम्बन्धी कोई करार नहीं हुआ था। दिर्हम (सुवर्ण मुद्रा ) देना कबूल करके, जब एक पक्ष सौर वर्षको माननेवाला अपने करारको पूरा करनेके समय, जान और दूसरा चान्द्र वर्षको माननेवाला था; बूझकर चाँदीके नये दिहम बनवाकर तो वर्ष-गणना किस प्रकार की जाती ? जो अन्याय किया था, उसी प्रकार भीष्म- भीष्मका यह न्याय एक दृष्टिसे योग्य हो का उक्त निर्णय भी अन्यायपूर्ण होगा। है कि यदि कौरव पराजित होते तो उन्हें यदि घृतके समय चान्द्र वर्ष प्रचलित नहीं तेरह सौर वर्ष, वनवासमें रहना चाहिये था, तो यही कहना पड़ेगा कि सत्यनिष्ठ था । परन्तु उसे दुर्योधनने नहीं माना पाण्डवोंने झूठा बर्ताव किया, और जो और इसी कारण भारतीय युद्ध उपस्थित सैंकड़ो राजा तथा लाखों क्षत्रिय पाण्ड-हुश्रा । अस्तु; बात यह है कि धूतके वोंकी ओरसे लड़े, उन्होंने आँख बन्दकरके समय यदि हिन्दुस्थानमें अाजकलकी नाई असत्पक्षका स्वीकार किया। अर्थात् यही चान्द्र वर्ष बिलकुल ही प्रचलित न होता, मानना पड़ता है कि, इतके समय सौर तो भीष्मका न्याय अयोग्य और पक्षपात- और चान्द्र दोनों प्रकारके वर्ष प्रचलित पूर्ण अवश्य कहा जाता। सारांश, भार- थे। द्यूतके समय इस बातका करार होना |तीय युद्धको उपपत्ति जाननेके लिये दो रह गया था कि कौनसा वर्ष माना बातें अवश्य माननी पड़ती हैं। पहली जायगा । अन्तमें यह वादविवाद उपस्थित बात यह है कि युद्ध के समय हिन्दुस्थानमें हुमा कि करारवाले वर्षको सौर मानना चान्द्र वर्ष प्रचलित था: और दूसरी बात साहिये या सान्ट । स्वीकार करना पडेगा यह है कि पाराड्य चन्द्र वर्ष मानने कि. दुर्योधन आदि कौरव सौर वर्षको वाले थे। इन दो बातोंसे ही भारतीय मानते थे और पाण्ड चान्द्र वर्षको मानते युद्धकालके निर्णयका साधन उत्पन्न थे; क्योंकि इसका स्वीकार किये बिना होता है। भारती युद्ध के झगड़ेका असल कारण घिराट पर्वकी कथासे भी प्रकट होता ठीक ठीक नहीं बतलाया जा सकता है कि यह महत्त्वपूर्ण प्रश्न संशयग्रस्त था; हमारी राय है कि दुर्योधन और कर्ण और इसी लिये उसका निर्णय न्यायाधीश सौर मानानुसार जो यह विवाद करते थे भीष्मसे पूछा गया।भीष्मका उत्तर मिलने- कि तेरह वर्ष पूरे नहीं हुए, वह ठीक था: के पहले ही द्रोणाचार्य पिछले अध्याय चान्द्र मानानुसार पाण्डव लोग जो यह (विराट०अ०५१) में कहते है-“जब कि कहते थे कि तेरह वर्ष पूरे हो गये, वह अर्जुन प्रकट हो चुका है, तब पाण्डवोंका भी ठीक था और भीष्मने पाण्डवोंके अज्ञातवास अवश्य ही पूरा हो गया है। पक्षमें जो न्याय किया वह भी यथार्थ अतएव, दुर्योधनने पाण्डवोंके अज्ञात था। आजकल हिन्दुस्थानमें सरकार वासके पूर्ण होने अथवा न होनेके सम्बन्ध- रोमन सिकिल वर्षको मानती है, मुसल- में जो प्रश्न किया है, उसका विचार