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- इतिहास किन लोगोंका है*
१४३ यहाँ वैदिक भरतोंका उल्लेख है और पीछेसे आये हुए चन्द्रवंशी आर्योका उनका पार्थक्य दिखलाया गया है। पहलेके भारतोंसे झगड़ा हुआ और उनके ऋग्वेदमें न तो सूर्यवंशका नाम है और बीच कई लड़ाइयाँ हुई। कई जगह उन न चन्द्रवंशका, पर चन्द्रवंशके मूल लोगोंके सम्बन्धमें ऋषियोंका क्रोध देखा उत्पादकों के नाम ऋग्वेदमै पाये जाते हैं। जाता है, इससे ज्ञात होता है कि ये लोग पुरूरवा, आयु, नहुष और ययाति ये पीछेसे आये । एक स्थान पर यह वर्णन है नाम ऋग्वेदमें हैं। विशेषता यह है कि कि दिवोदासके लिए इन्द्रने यदु-तुर्वशोको ऋग्वेदमें एक जगह ययातिके पाँच पुत्रोंका मारा । शरयू नदी पर भी भरत राजाओसे उल्लेख है और उन पाँचोंके नाम भी दे यदु-तुर्वशोकी लड़ाइयाँ हुई । ऋग्वेदके दिये हैं, तथा उनसे उत्पन्न पाँच लोगोंके भी कुछ सूक्तोंमें एक बड़ा युद्ध वर्णित है। नाम हैं । इस उल्लेखसे स्पष्ट मालूम होता यहाँ उसका खुलासा करना आवश्यक है। है कि वे पाँच भाई थे । पुराणों और इस युद्ध को 'दाशराश' कहा है। यह महाभारतमें वर्णित चन्द्रवंशका पता युद्ध परुणी-आजकलकी रावी नदीके लगानेके लिए ऋग्वेदमें अच्छा अाधार किनारे हुआ था । एक पक्षमें भरत और मिलता है। ये चन्द्रवंशी क्षत्रिय आर्य उनका राजा सुदास तथा पुरोहित वसिष्ठ अग्निके उपासक थे । सूर्य-चन्द्रवंशी और वित्सु थे। दूसरे पक्षमें पाँच पार्य क्षत्रियों की ही तरह ये इन्द्रादि देवताओंके राजा-यदु, तुर्वश, द्रा, अनु और पूरु भक्त थे। पहले ये गङ्गाकी घाटियोसे तथा उनके मित्र पाँच अनार्य राजा थे। सरस्वतीके किनारे श्राये और वहीं इस युद्ध में भरतोंका सत्यानास किया आबाद हो गये । इस तरहकी बातें जानेवाला था और उनके धनको शत्रु ऋग्वेदकी ऋचाओंसे सिद्ध होती हैं। लोग लूटनेवाले थे। परन्तु जब वसिष्ठने ऋग्वेद. (१. १०८) में कहा है-“यदिन्द्राग्नी इन्द्र की स्तुति की तब नदीसे नहर खोदकर यदुषु तुर्वशेषु यद्रुह्येष्वनुषु पूरुषु स्थः । जलका प्रवाह निकाला गया जिसके बहते अतः परि वृषणा वा हि यातमथा सोमस्य समय, शत्रुकी सेना बह गई और उन्हींका पिबतं सुतस्य ।” अर्थात् हे इन्द्र और सामान भरतोंके हाथ लगा। ऐसा वर्णन अग्नि, यद्यपि तुम यदुओंमें और तुर्वशोंमें, है कि ६००० दुा और अनु, गाय-बैल इसी तरह द्राओंमें, अनूनोंमें, और हाँककर लाते समय, रणांगणमें मारे पुरुषोंमें हो, तथापि यहाँ श्रात्री और गये । उस लड़ाईके उदाहरण और भी निकाले हुए इस सोमरसको पियो ।” कई सूत्रोंमें हैं। इससे ज्ञात होता है इससे अनेक अनुमान निकलते हैं। एक कि पश्चाबमें पहले श्राकर बसे हुए यह कि, ये पुराने आर्योंकी भाँति इन्द्र भारतीको जीतनेका प्रयत्न बादको और अग्निके उपासक थे। दूसरे, ये पाँचों आये हुए यदु वगैरह क्षत्रियोंने अनार्य एक ही वंशके होंगे: उसमें भी यदु और राजाओंकी सहायतासे किया । परन्तु तुर्वसु सगे ही थे, और दह्यु, अनु एवं ऋग्वेदकं समय वह प्रयत्न सिद्ध नहीं पूरु सगे थे । चन्द्रवंशी ययानिकी हुश्रा । कुछ लांग कल्पना करेंगे कि इस दो स्त्रियोंसे उत्पन्न पाँच पुत्रौकी कथा | युद्ध में भारती युद्धकी जड़ होगी। परन्तु यहाँ व्यक्त होती है। स्मरण रहे कि यह यद्ध बहत प्राचीन कालमें ऋग्वेदसे पता लगता है कि इन हुआ था। इसमें एक और भरत यानी