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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा *

ये लड़के पाण्डुके नहीं हैं, और इसी साथ यह बात बतलावेंगे कि ब्राह्मण और कारण यह झगड़ा धीरे धीरे बढ़कर आगे क्षत्रिय दोनों एक ही अंशसे उत्पन्न हुए बहुत भयङ्कर हो गया । महाभारतमें हैं। पाण्डुका देहान्त हो जाने पर कुन्ती पाण्डवों और भारती-युद्धकी पूर्वपीठिका अपने पाँचों बेटोंको लेकर, ब्राह्मण तथा ऐसी ही दी है। अब यहाँ इस बातका क्षत्रिय परिवारके साथ, हिमालयके कमाल विचार करना चाहिए कि इस कथाका प्रदेशको छोड़कर अपने पुराने पहचाने ऐतिहासिक स्वरूप क्या है। कुछ लोग हुए स्थान पर हिन्दुस्थानमें आई। अब समझते हैं कि यह सारी कथा काल्पनिक यहाँ प्रश्न होता है कि पागडवोंकी उत्पत्ति है। पर यह समझ ग़लत है। हमारी रायमें किस प्रकार हुई। परन्तु उस समय प्राचीन चन्द्रवंशकी अन्तिम शाग्वाके जो आर्य आर्योंमें अर्थात् हिमालय-वासियों में हिन्दुस्थानमें बाहरसे श्राये थे, उन्हीं में नियोगको गति प्रचलित थी । यही क्यों, पाण्डव लोग हैं । हम पहले लिख चुके हैं। बल्कि महाभारतमें विचित्रवीर्यकी सन्तति. कि चन्द्रवंशी लोग हिमालयके उस ओर- के विषयमें जी वर्णन है, उससे सिद्ध होता मे, गङ्गाकी घाटियों से होते हुए हिन्दु- है कि नियोगका प्रचार हिन्दुस्थानके कुरु- स्थानमें श्राये । चन्द्रवंशका मूल पुरुष पुरू- घरानेम भी था। नियोग-विषयक उल्लेख रवा ऐल यानी इलाका बेटा था; और मनुस्मृतिमें भी है । मनुस्मृतिमें इस रीति- हिमालयके उत्तरमें जो भाग है, उसका को निन्द्य मानागया है, इस कारण समाज- नाम इलावर्ष है। अर्थात् , चन्द्रवंशकी मे उसका चलन उठ गया । इसमें सन्देह मूल-भूमि इलावर्ष था; और कुरुओका नहीं कि पाराडव लोग ऐतिहासिक हैं और जो मूल-स्थान हिमालयके उत्तरमें था, वे हिमालयसे आये हुए अन्तिम चन्द्रवंशी उसका नाम उत्तर कुरु था। मतलब यह क्षत्रिय है। बहुपतिकत्वकी रीतिसे यह कि जिस प्रकार कोकणस्थ ब्राह्मण घाटियों बात निर्विवाद सिद्ध होती है । श्रादिपर्वके पर आये और फैलकर बस गये, परन्तु व अध्यायमें इस विवादका वर्णन है उनकी मूल-भूमि आजकल दक्षिणी कोकण कि एक द्रौपदीके साथ पाँचों पाण्डवोंका ही है, उसी प्रकार कुरुओंका मूल देश विवाह किस तरह हो । वह यहाँ उद्धृत हिमालयके उत्तर भागमें था। महाभारत- करने योग्य है। "एक स्त्रीके अनेक पति का यह वर्णन ठीक जान पड़ता है कि , कहीं नहीं मुने गये । यह लोकाचार और तबीयत बिगड़ जानेसे पाण्डु राज्य छोड़- वेदकी आशाके विपरीति रीति तुम कैसे कर चला गया । पाण्डु अपने कुरु लोगों- बताते हो ?" तब युधिष्ठिरने कहा-"पूर्व- की मूलभूमिमें गया और वहाँ पर कई कालीन लोग जिस मार्गसे गये हैं, मैं उसी वर्षतक रहा। वहाँ पर वह इतने अधिक पर तो चलता हूँ।" उसने स्पष्ट कह दिया समयतक रहा होगा कि उस देशके कि-"यह हमारा कुलक्रमागत आचार आचार-विचार उसकी, और उसके परि- है।" इससे प्रकट होता है कि पाण्डवोंकी वारकी, नस नसमें भर गये । उस देशमें उत्पत्ति हिमालयमें हुई और वहाँ यह चन्द्रवंशी क्षत्रियों में जो रीतियाँ प्रचलित रीति थी । अत्यन्त प्राचीन कालमें यह थी, वे पुराने ढङ्गकी थीं, और हिन्दुस्थानमें रीति आर्यों में थी। पर वेदोने इसको नहीं बसे हुए क्षत्रियोंकी रीतियोंसे मिलती-माना । जो हो, इससे सिद्ध हुआ कि जुलती न थीं। हम आगे चलकर विस्तारके पाण्डव अत्यन्त प्राचीन शाखाके हिमा-