- वर्ण-व्यवस्था । *
१८१ विश्वास था कि म्लेच्छ और अन्य वर्ण- वर्णन उसी समयकी स्थितिका होगा । बाह्य जातियाँ दुष्ट होती हैं। ऊपरके अथवा, जिस समय चन्द्रवंशी प्रार्य.पहले- वर्णनसे यही देख पड़ेगा कि वर्ण शब्द- पहल हिन्दुस्तानमें पाये उस समय शुरू का अर्थ वंश करना चाहिये । भारतीय शुरूमें वर्णके सम्बन्धमे विशेष परवा नहीं प्रायोंमें वर्णसङ्करके सम्बन्धमें अतिशय की गई और भिन्न भिन्न वर्णवालोंने शूद्रों द्वेष था, इस कारण जातियोंके बन्धनके को स्त्रियाँ कर ली; उसीकी ओर इस विषयमें उनका मत अनुकूल हो गया और वर्णनका इशारा होगा। इन दोनों समयोको भिन्न भिन्न जातियाँ विवाह-बन्धनसे बँध छोड़कर और कभी जातिके बन्धन ढीले गई। यहाँतक कि जातिका बीज भारती न पड़े थे। ऊपर जिस सत्यकाम जाबाल- समाजमें पूर्णतासे भर गया । ब्राह्मण, की बात लिखी गई है, वह छान्दोग्य उप- क्षत्रिय और वैश्यके भी स्वाभाविक धर्म निषद्में है। वह भी ऊपरवाले समयकी अलग अलग स्थिर हो गये। भगवद्गीतामें ही होगी। हम दिखला चुके हैं कि बौद्ध- जातियोंके स्वभाव-सिद्ध होनेकी कल्पना कालमें 'जातिवन्धनका अनादर होनेके है। और, उसमें स्पष्ट कह दिया गया है कारण महाभारतके अनन्तर बहुत शीघ्र. कि यह भेद ईश्वरनिर्मित है। 'चातुर्वर्य जाति सम्बन्धके नियम खुब कड़े हो गये। मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः । यह भग- वद्गीताका वचन है। इसमें भिन्न भिन्न ब्राह्मणोंकी श्रेष्ठता। जातियोंके स्वभाव-सिद्ध भिन्न भिन्न गुण यहाँतक बतलाया गया है कि ऋग्वेद- होनेकी बात मान्य की गई है। इसी से लेकर अर्थात् सन् ईसवीके ३००० वर्ष कारण वंशके भेद अर्थात् जातिके भेद पहलेसे लेकर महाभारत-कालतक चातु- (वर्ण = जाति) का बन्धन स्थिर हुश्रा और वर्यकी संस्था जारी थी और चार वौँ- हिन्दुस्तानमें भिन्न भिन्न जातियोंका वृक्ष के सिवा उनके मिश्रणसे अनेक वर्ण हो फैल गया। गये थे। इस विस्तारका मुख्य बीज यह था अब यह निश्चय करनेकी इच्छा होती कि आर्य वाँकी नैतिक उन्नतिका स्वरूप है कि ऊपर जो युधिष्ठिर-नहुष-सम्वाद तो बहुत उच्च था और शूद्रों तथा म्लेच्छो- वर्णित है, वह है किस समयका । युधि- में यह बात न थी । इसमें भी इस विशेष ष्ठिरने जो यह कहा कि-'इस समय सब | परिस्थितिमें ब्राह्मणों के आदरसे उसे स्थिर वों के लोग सभी जातियों में सन्तान स्वरूप प्राप्त हो गया। महाभारतमें बार उत्पन्न करते हैं। सो यह किस समयकी बार कहा गया है कि ब्राह्मणोंके सम्बन्ध- बात है ? महाभारतके पहले जाति-बन्धन में सबके मनमें अत्यन्त आदर होना बहतकरके सब समय था और यधिष्ठिरका | चाहिये । इसका यह कारण है कि ब्राह्मणों- कथन है कि सब लोगोंमें वर्ण-सङ्कर हो रहे की नीतिमत्ता महाभारतमें बहुत ही ऊँचे हैं; यह बात किस समयको लक्ष्य करके दर्जेकी वर्णित है। हमें यह देखनेकी कोई कही गई है? इसका निश्चय कर लेना आवश्यकता नहीं कि सभी ब्राह्मणोंने चाहिये । यह कटाक्ष बहुत करके बौद्धो अपने आचरणको सचमुच उत्तम रीतिसे पर होगा। बौद्धोंने जाति-पाँतिके झगड़े. रक्षा की थी या नहीं: किन्तु महाभारतमें को दूर हटाकर सब जातियोको एक ब्राह्मणोंके तप, सत्यवादित्व और शान्ति- करनेका प्रचार शुरू कर दिया था। यह का जो वर्णन है, उससे तत्कालीन लोगों-