- शिक्षा-पद्धति *
२०७ नियम ऊपर लिखे गये हैं उन पर ध्यान शिक्षा दें। प्राचीन काल में यह बन्धन था। देनेसे यह बात सहज ही समझमें श्रा न सिर्फ धार्मिक शिक्षा ही बल्कि अन्यान्य जायगी । गृहस्थाश्रमके द्वारा धर्म, अर्थ, व्यवसायोंकी शिक्षा भी ब्राह्मणों को ही काम और मोक्ष चारों पुरुषार्थ सध देनी चाहिये और यह निर्विवाद है कि सकते हैं । परन्तु उत्तम यही है कि पुत्र- वे देते रहते थे । यद्यपि उस समय को काम-काज सौंपकर वुढ़ापेमें वान- शिक्षा-दान राजाका कर्म माना जाता था, प्रस्थ और संन्यासकी ओर बढ़ जाय। तथापि उसका यह मतलब न था कि सर- महाभारतकारका ऐसा ही मत देख कारी मदरसे वोलकर राजा इस कामको पड़ता है। करे। इसका अर्थ यह था कि राजा ब्राह्मणोंकी जीविकाको चिन्ता रखे । (३) शिक्षा-पद्धति । ब्राह्मणों के निर्वाहकी फ़िक करना समाज- प्राचीन काल में हिन्दुस्तानमें किस तरह का कर्तव्य था और ऐसा कर्तव्य पूर्ण की शिक्षा-पद्धति थी? गुरु-शिष्य-सम्बन्ध करनेकी दृष्टिसे दान लेनेका अधिकार कैसा रहता था ? साधारण लोगोंको केवल ब्राह्मणोंको दिया गया था सही: कैसी शिक्षा दी जाती थी ? क्षत्रियोंको परन्तु जहाँ इस प्रकारमे उनकी गुज़र न क्या सिखलाया जाता था ? स्त्रियोंको क्या होती ही, वहाँ यह नियम था कि उनकी सिखलाया जाता था ? राजकुमागेको आवश्यकताएँ राजाको पूर्ण करनी किस तरह और क्या सिखलाते थे? लोगों- चाहिएँ । यह बात सिर्फ स्वकर्मनिष्ठ ब्राह्मणों- को रोज़गारकी शिक्षा कैसे मिलती थी? के ही लिए थी, मामूली लोगोंके लिये इत्यादि प्रश्नों पर इसी प्रकरणमें विचार नहीं। महाभारतमें लिखा है कि और करना है। यह तो प्रकट ही है कि इस ब्राह्मण तो 'ब्राह्मणक हैं: राजाको उनके सम्बन्धकी तमाम बात-पूरी जानकारी- साथ शुद्रवन, व्यवहार करना चाहिये। केवल महाभारतमें नहीं मिल सकती। प्राचीन काल में इस प्रकार शिक्षाकी व्यवस्था तथापि भिन्न भिन्न स्थानोंके उल्लेखोंसे अत्यन्त उत्तम थी और समाजमें स्वार्थ- इस सम्बन्धमें बहुतसा ज्ञान प्राप्त हो त्यागकी पद्धति पर शिक्षकोंका एक स्वतन्त्र सकता है और उसे एकत्र करके इसी वर्ग ही तैयार रहता था । यह बात गलत (वर्णाश्रमक) प्रकरणमें इस विषयकी चर्चा है कि ब्राह्मणोंने प्राचीन कालमें लोगोंको करना है। अज्ञानमें रखा: बल्कि उनके सम्बन्ध पहली बात यह है कि प्राचीन समय-: आदरपूर्वक यह कहना चाहिये कि सब में लोगोंको शिक्षा देनेका काम ब्राह्मणोंने ; लोगोंको शिक्षा देनेका काम उन्होंने अपने अपने ज़िम्मे ले रखा था । वर्ण-व्यवस्था- ज़िम्मे ले रखा था। में जो अनेक उत्तम नियम थे, उनमें एक जैसा कि ऊपर लिखा गया है, प्राचीन यह भी नियम था कि-'सिखानेका काम कालमें शिक्षा-दानके लिये सरकारी मद- ब्राह्मण करें । ब्राह्मणके आध-कर्तव्यो रसे न थे । प्रत्येक ब्राह्मणका घर ही विद्या और अधिकारों में अध्यापन और अध्ययन पढ़नेके लिये स्कूल था । चाहे जिस गुरु- थे। सब प्रकारकी शिक्षा देनेकी योग्यता के घर जाकर विद्यार्थी लोग अध्ययन किया ब्राह्मण स्वयं अध्ययन करके, सम्पादित करते थे और यह भी नियम था कि गुरु करें और फिर उसके अनुसार वे सबको अपने घर पर विद्यार्थीको पदावे । प्राचीन