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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा * तो सभी जानते हैं कि नृत्य सिखलानेके शिक्षा देनेके लिये पुरुष न रम्ने जाते लिये अच्छा विस्तृत स्थान चाहिये, तब थे। बृहन्नडाको शिक्षा देनेके काम पर ऐसी शिक्षा दिलघाना धनवानोंका ही नियुक्त कर लिया, यह भी आश्चर्य करने काम था। यह शिक्षा कुमारियोको ही लायक बात है। क्योंकि यह राय तो दी जाती थी, और विवाहके समय उन हमेशासे है कि हिजड़े लोग व्यवहारमें कन्याओके जो खास खास गुण बतलाये सबसे बढकर व्याज्य हैं। यह भी वर्णन जाते थे उनमें एक यह भी मान्य किया है कि विराटने परीक्षा करवाकर पता गया होगा। उत्तराके साथ साथ महलो- लगा लिया था कि बृहन्नडा पुरुष नहीं, की और बाहरकी भी कुछ क्वाँरी कन्याएँ हिजड़ा (क्लीय) है। इससे यह भी प्रकट सीखती थीं। 'सुताश्च मे नर्तय याश्च है कि वह ख्वाजह न था। किंबहुना तारशीः। कुमारीपुरमुत्ससर्ज तम्' इस जैसा कि अन्यत्र वर्णन किया गया है, वाक्यसे ज्ञात होता है कि यह शिक्षा ख्वाजह बनानेकी दुष्ट और निन्द्य रीति अविवाहित लड़कियोंके ही लिये रही भारती पार्योंमें कभी न थी। कमसे कम होगी। स्त्रियोंको कुमारी अवस्थामें शिक्षा महाभारतके समयतक तो न थी। प्राचीन देना ठीक है और उस ज़मानेमें क्वाँगियों- बेबिलोनियन, असीरियन और पर्शियन को ही शिक्षा देनेकी रीति रही होगी। श्रादि लोगोंमें यह गति थी, पर भारती विवाह होते ही स्त्रियाँ तत्काल गृहस्थीके श्राों में न थी और उनमें अब भी नहीं झमेलेमें पड़ जाती थीं, इसलिये शिक्षाका है। उनके लिये यह बात भूपरणावह है। समय कमारी दशामें ही था। स्त्रियोंके विराटने परीक्षाके द्वारा बहनडाको कीब लिये न ब्रह्मचर्याश्रम था और न गुरुगृहमें समझकर अन्तःपुग्में कुमारियोंको नृत्य पास करनेकी झंभट । किन्तु ऊपर जो सिखलाने के लिये भेजा। इम वर्गानसे वर्णन किया गया है उससं देख पड़ता प्रथम यह देख पड़ता है कि महाभारत- है कि लड़कियोंको मैकमें ही शिक्षक कालम लड़कियोंको नृत्य सिखलानेके द्वारा शिक्षा दिला दी जाती थी और यह लिये क्लीव ही नियुक्त होते थे: परन्तु शिक्षा बहुत करके ललित कलाओंकी ही कालिदासके मालविकाग्निमित्र नाटकमें होती थी। इनमें नृत्य-गीत-वादित्र विषय यह बात भी नहीं मिलती। मालविकाको ख़ासकर क्षत्रिय-कन्याओंके थे। यह वर्णन नृत्य सिखलानेवाले दोनों प्राचार्यों- है कि नृत्यशालामें शिक्षा पाकर लड़कियाँ गणदाम और हरदास-के क्लीय होनेका अपने अपने घर चली जाती है और गत- वर्णन नहीं है। नब फिर यह पहेली ही को नृत्यशाला सूनी रहती है। "दिवात्र रही। दसरी पहेली यह है कि स्त्रियोको कन्या नृत्यन्ति रात्री यान्ति यथागृहम" नाच-गान सिखलानेके लिये त्रियोंका (वि० अ०२२)। तब यह स्पष्ट है कि उपयोग किया हश्रा कहीं नहीं मिलता। बाहरकी लड़कियाँ भी शिक्षा प्राप्त करने । पाश्चात्य देशोमें भी स्त्रियोंको नाच-गान को आया करती थीं, परन्तु वहाँ रहती सिखलाया जाता है किन्तु इसकी शिक्षा न थी-लौट जाती थीं। उन्हें पुरुषोंसे ही प्राप्त होती है। अर्जुन नृत्य-गीत सिखलानेके लिये विराटने खुब दृढ़, सुस्वरूप और हट्टा कट्टा जवान वृहनडाको रक्खा था। इससे अनुमान देख पड़ता था। इस कारण, विराटने होता है कि लड़कियों को इन विषयों की परीक्षा करवाई कि यह दर-असल क्लीय