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महाभारतमीमांसा

२२ & महाभारतमीमांसा ® - विवाह-सम्बन्धमें, एकपल्लीत्वका मुख्य क्षत्रियोंको ब्राह्मणेतर तीनों वॉकी स्त्रियाँ उत्तम नियम भारती पार्यों में नहीं बना, ग्रहण करनेका अधिकार था; और क्या यह बात हमें माननी पड़ेगी। वैदिक- साम्पत्तिक स्थिति और क्या राजकीय कालसे लेकर महाभारतके समयतक स्थिति दोनों ही तरहसे ऐसी अनेक स्त्रियाँ पुरुषोंको अनेक स्त्रियाँ ग्रहण करनेका उन्हें प्राप्त हो सकती थी। परन्तु सारे अधिकार था और वे ऐसा करते भी थे। समाजकी स्थितिका निरीक्षण करने पर वेदमें स्पष्ट रीतिसे कहा गया है कि जिस ज्ञात होगा कि प्रत्येक मनुष्यको अपने ही प्रकार एक यूपसे अनेक रशनाएँ बाँधी वर्णकी अनेक स्त्रियाँ मिल जाना सम्भव जा सकती हैं, उसी प्रकार एक पुरुष नहीं। समूची जनतामें पुरुषोंकी और अनेक स्त्रियाँ रख सकता है। इस प्रकार स्त्रियोंकी भी संख्या बहुधा कुछ ही न्यूना- अनेक स्त्रियाँ ग्रहण करनेकी रीति भारती | धिक परिमाणमें एकसी होती है । आर्योंमें, सारी दुनियाँके अन्य प्राचीन इस कारण, यद्यपि पुरुषको अनेक स्त्रियाँ समाजोंकीतरह, श्रमलमें थी। महाभारत-करनेकी स्वाधीनता हो तो भीराजा लोगों- में अनेक राजाओंके जो वर्णन हैं, उनसे के सिवा और लोगोंका अनेक स्त्रियाँ यह बात स्पष्ट देख पड़ती है। पाँचों करना सम्भव नहीं। राजाओंमें भी जो पाण्डवोंके, द्रौपदीको छोड़ और भी कई अनेक रानियाँ रखनेकी प्रथा थी उसमें स्त्रियाँ होनेका वर्णन है। श्रीकृष्णकी पाठ भी थोड़ासा भेद देख पड़ता है । बराबरी- पटरानियोंके सिवा और भी अनेक भार्याएँ | वाले राजाओंकी येटियाँ विशेष इजतकी थी। यह अनेक स्त्रियाँ करनेकी रीति रानियाँ मानी जाती थी और उनका विशेषतः क्षत्रियोंमें महाभारतके समयतक विवाह भिन्न रीतिसे होता रहा होगा। ये जारी रही होगी। यह तो पहले देखा ही पटरानियाँ समझी जाती और संख्या में वे जा चला है कि सौतिने स्त्री पर्व बड़ा | इनी-गिनी ही होती थीं। श्रीकृष्णकी पट- दिया है। विशेषतः युद्धकी समाप्ति पर | रानियाँ पाठ ही थीं। वसुदेवकी भी रणाङ्गणमें पड़े हुए वीरोंकी स्त्रियाँ पतिकी | इतनी ही थीं। विचित्रवीर्यके दो थी। लोथ लेकर शोक कर रही हैं-यह सौति- | पाण्डुके दो थीं । भीमके द्रौपदीके सिवा कृत वर्णन काल्पनिक है। इसमें भी उसने शिशुपालकी बहिन एक और स्त्री थी। अपने ज़मानेकी परिस्थितिके अनुसार आश्रमवासी पर्व (१०२५)में इसका उल्लेख प्रत्येक राजाकी अनेक स्त्रियाँ होनेका वर्णन है। अर्जनके सुभद्रा और चित्राझदाये दो स्थान स्थान पर किया है । यहाँ उस वर्णन- स्त्रियाँ और भी थीं । सहदेवकी एक और का एक ही श्लोक देना काफी होगा। पत्नी थी जरासन्धकी बेटो: और नकुलके श्यामानां वरवर्णानां गौरीणामेक- भी एक और स्त्री थी । धृतराष्ट्रके दुर्योधन वाससाम् । दुर्योधनवररूपीणां पश्य आदि पुत्रौकी यहाँ सौ स्त्रियाँ ही वर्णित वृन्दानि केशव ॥ हैं। तात्पर्य यह कि राजा लोगोंके भी मुख्य ___ इस श्लोकमें दुर्योधनकी स्त्रियोंके अनेक स्त्रियाँ एक या दो, अथवा बहुत हुआ तो वृन्द वर्णित है । प्राचीन कालमें गजा पाठतक, हो सकती थीं; शेष स्त्रियाँ अनेक लोगोंको सिर्फ अनेक स्त्रियाँ रखनेकी हो भी तो उनका दर्जा बहुत हलका होगा। अनुज्ञा ही न थी बल्कि वे ऐसा करने भी इसमें भी विशेष रूपसे कहने लायक बात थे। क्योंकि, जैसा पहले कहा जा चुका है, यह है कि महाभाग्नमें युधिष्ठिरकी-