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- महाभारतमामांसा *
मृत्यु अथवा वृद्धि (सौर) हुई हो ।" रीतियों आदिके विषयमें जो अत्यन्त (शां० अ० ३६) इस वर्णनसे हमारे भारती महत्वकी और मनोरञ्जक बात जाननेकी आर्योंके खाने-पीनेके सम्बन्धके कुछ सब लोगोंको उत्कण्ठा होती है वह उनके खास नियमोंकी अटकल लगाई जा कपड़े-लत्तों और प्राभूषणोंके सम्बन्धमें सकती है। महाभारतके समय ब्राह्मण रहती है। प्राचीन कालके लोगोंका शारी- लोग क्षत्रियों और वैश्योंके यहाँ भोजन रिक वर्णन अथवा उनकी रङ्गतका वर्णन किया करते थे, परन्तु शूद्रोंके यहाँ इतना महत्त्वपूर्ण नहीं होता क्योंकि अपनी भोजन करने नहीं जाते थे। शुद्रके यहाँ और अपने पूर्वओको शारीरिक परिस्थिति- भोजन करनेसे ब्रह्मवर्चस् लुप्त होनेकी के बीच विशेष अन्तर पड़नेकी सम्भा- बात स्पष्ट कही गई है। इसके सिवा वना नहीं रहती । किन्तु कपड़े-लत्तोंके सुनारके यहाँ भोजन करनेका जानेकी सम्बन्धमें मनुष्यकी परिस्थितिमें भिन्न मनाही थी । यह बतलाना कठिन है कि भिन्न कारणोंसे और मनुप्यकी कल्पनासे सुनारके सम्बन्धमें क्या दोष रहा होगा। बहुत फर्क हो जानेकी विशेष सम्भावना धोबी, वैद्य, मोची और बढ़ईके पेशके रहती है। इसके सिवा प्राचीन लोगोंकी सम्बन्धमें इसी प्रकारका नियम है। किन्तु : बाते बतलाते हुए उनके वस्त्र प्रावरणोंका इस मनाहीका कारण उन पेशोंका कोई वर्णन पुगने ग्रन्याम बहुत ही अपर्ण ग्बास अवगण रहा होगा। इन रोजगागेमें रहता है। क्योंकि उपन्यासों आदिके जो प्राणिहिंसा होती है अथवा अमाङ्ग- सिवा स्त्री-पुरुषोंके हबहू वर्णन अन्य लिकता है, कदाचित् उस पर ध्यान रहा। ग्रन्थोंमें नहीं होते। भिन्न भिन्न परिस्थि- हो। कहा गया है कि राजाधिकारी तियोंमें, और सम्पन्नताकी भिन्नताके और व्याज-बट्टे का काम करनेवालेका भी कारण, तरह तरहकी पोशाकों और अन्न न खाना चाहिए। यह ध्यान देने गहनोंकी उपज हम देखा करते हैं। इस योग्य बात है। इसके सिवा और नियमोके कारण एक परिस्थितिवाले लोग दुसरी सम्बन्धमें हमें यह देख पड़ता है कि अन्न परिस्थितिवालोंकी पोशाककी कल्पना खा लेनेसे जठा हो जानेका विचार, आज- नहीं कर सकते । उदाहरणार्थ, परिस कलकी भाँति, नब भी था। सखरे-निखरे नगरीके सुधारोंके शिखर पर बैठी हुई और छत या निर्लेपका भेदाभेद उस पाश्चात्य स्त्रियोंको, हिन्दुस्थानी किसी जमाने में स्पष्ट नहीं देख पड़ता। कमसे जङ्गली जातिम उत्पन्न स्त्रियोंकी पोशाककी कम इस सम्बन्धका उल्लेख कहीं पाया | कल्पना होना सम्भव नहीं । पहुँचेसे नहीं जाता । अर्थात् उच्छिष्ट दोष दोनोंमें | लेकर कुहनीतक पीतलकी चूड़ियाँ पहने, ही एकसा मान्य देख पड़ता है। गलेमें सफेद पत्थरकी गुरिया-मणिकी ___ भोजनके सम्बन्ध जो बातें मालूम तरह-पहने, फटे-पुराने कपड़ेको कटि- हो सकी वे एकत्र करके पाठकोंके सम्मुख । प्रदेशमें लपेटे और सिर पर छोटासा रख दी गई। अब भारती प्राचीन आयौंके काला कपड़ा बाँधे हुए किसीको देखकर बस्त्र-श्राभूषणोंकेरवाजका वर्णन करना है। पेरिस नगरवासिनी ललनाको आश्चर्य होगा। इधर ऐसी स्त्रियों को उन मेमसाहबा- वस्त्र और भूषण। की पोशाककी कल्पना न हो सकेगी कि प्राचीन कालके लोगोंकी भिन्न भिन्न जिनके फूले लहँगोंमें तरह तरहके चित्र