पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/२९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२६८
महाभारतमीमांसा

- महाभारतमीमांसा होता है कि उन केशो पर उसने रुमाल ("उष्णीषेपरिगृहीतां माद्रीपुत्रावुभौ तथा। या कपड़ेका टुकड़ा लपेटकर बालोको (अनु० अ० १६६-१४) छिपा लिया । अपने सुन्दर केशोंको इसमें भीष्मकी दो पगड़ियोंका उल्लेख छिपानेके लिए उसने यह युक्ति की होगी। है। इससे प्रकट होता है कि सफेद साधारण रीति पर नियोंके केश पीठ पर पगडी बुड़े आदमी खास तौर पर पहनते लटकते होंगे । सौभाग्यवती स्त्रियोंकी' थे। यही नहीं, बल्कि कवचके भी सफ़ेद केश-रचनाके सम्बन्धमें यही मालूम होता होनेका वर्णन है । अर्थात् तरुण लोग है। इस सीमन्त या माँगके बीच केशर सफेदसे भिन्न कोई रङ्गीन पोशाक पह- अथवा कुङ्कम भरनेकी चाल थी। इसके नते थे। यूनानियोका ध्यान भारती आर्यों- सिषा यद्यपि स्त्रियोंके ललाट पर कुङ्कुम के विशेष शिरोभूषण पगड़ी पर गया लगानेकी रीतिका वर्णन अथवा उल्लेख न । था। यह पगड़ी अन्य देशवालोंसे निराली हो तो भी महाभारतके समय सौभाग्य- होती थी। यूनानी ग्रन्थकार अरायनने वती स्त्रियोंमें कुङ्कम लगानकी चाल अवश्य लिला है-"हिन्दुस्थानी लोग एक कपड़ा रही होगी। उद्योग पर्वमें वर्णन है कि कमरके आसपास घुटनोंके नीचे गूड़ी- पाण्डव और श्रीकृषणके भाषण के समय तक पहनते हैं और एक और कपडा लिये द्रौपदीने अपने भौंरारं काले, सुवासित रहते हैं, इसीको सिरमें लपंट लेते हैं।" केश हाथमें लेकर श्रीकृष्णको दिखलाये। इस वर्णनमें पगड़ी और उत्तरीय एक इससे प्रश्न होता कि इन बालोंकी वणी , ही मालूम पड़ता है । परन्तु यह कल्पना बाँधी गई थी या नहीं : परन्तु बहुन करके बहुत करके गलत है। कदाचित् गरीब उसके केश खुले हुए न होंगे । 'केशपत्न' लोग इस तरह सिरको लपेट लेते होंगे। शब्दसे बँधे हुए केश लिये जा सकते हैं। यह तो आजकल भी देखा जाता है कि पुरुषोंकी पगड़ी। धोती या दुपट्टा ही सिर पर लपेट लेते । हैं । किन्तु साधारण तौर पर इसमें पुरुषोंके मस्तकके केश शिखाबद्ध होने शरीर बुला रहता है। सम्पन्न लोगों में थे और बाहर आते-जाते समय मस्तक पर पगडी और उत्तरीय अलग अलग रहे पगडी पहननेकी रीति देख पडती है। होगे। एक और यनानी इतिहास लेखक भारती आर्योंकी पगड़ी उनका विशेष हिन्दुस्तानियोंका वर्णन करते हुए लिखता चिह्न था: और कल्पना होती है कि एक है-"हिन्दुस्तानी लोग एक सूक्ष्म वस्त्र लम्बा और कम चौड़ा वस्त्र सिरसे लपेट अपने पैरोंतक पहनते हैं और अपने सिर- लिया जाता होगा। यही पगड़ी होगी। में सूती कपड़ा लपेटते हैं तथा पैरोमें जूता युद्ध के लिए प्रस्थित भीष्म और द्रोणका पहनते हैं।" सिरमें लपेटी हुई पगड़ी जो वर्णन किया गया है, उसमें सिर पर बहुत करके सादे श्राकारकी होगी और सफ़ेद पगड़ी पहननेका उल्लेख है। पगड़ी- उसे हर एक मनुष्य अपने हाथसे यो के लिए उपाष शब्द व्यवहत। उटाही लपेट लेता होगा। आजकल पगडी हरणार्थ यह वर्णन देखिए-"द्रोणाचार्य- बाँधना जैसा मुश्किल काम है, वैसा उस जी सफ़ेद कवच, वस्त्र और शिरोवेष्टण ज़मानेमें न होगा । मामूली रीति आज- ( उष्णीष ) धारणकर धनुपका टंकार कल भी यही है कि गरीब लोग अपने ही करते थे" . हायसे या तो पगड़ी लपंट लेते हैं या