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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३०२

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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

कपड़े सँभालनेके लिए नहीं, निरी शोभा- नथ पहननेकी रीति प्रायः हिन्दुनों में के लिए होता होगा । अब, नहीं कह ही है और यह शब्द भी 'नव-मौक्तिक' से सकते कि पैरोंके नृपुर किस प्रकारके निकला हुआ आन पड़ता है। अर्थात् यह थे । उनकी बनावट दक्षिणी स्त्रियोंके । शब्द यहींका है। तब यह भूषण भी भारती लोड़ोंकी सी तो मानी नहीं जा सकती : आर्योंका ही होना चाहिए । यही बात क्योंकि न पुरोकी रुमझुम ध्वनिका वर्णन अर्वाचीन समयके अन्य भूषणोंकी भी अनेक काव्योंमें है। तब वे लच्छोकी तरह समझनी चाहिए। होंगे। इसके अतिरिक्त पैरोंके ऊपरका महाभारतमें प्राभूषणोंकाजो वर्णन है, माग बहुत कुछ उनसे छिप जाता होगा। उसकी पुष्टिके लिए यूनानियोंके लेखोंका फिर लक्ष्मणके लिये उनकी पहचान बनी बहुत कुछ अाधार मिलता है। इतिहास- रहना सम्भव नहीं। उल्लिखित वर्णनके कार कर्टिसरूफसने लिखा है कि "कानों- साथ, प्राचीन कालकी यूनानी स्त्रियों में रत्नोंके लटकत हुए गहने पहननेकी होमर लिखित-वर्णन में भी बहुत कुछ रीति हिन्दुस्तानियोंमें है: और उच्च श्रेणी- समता देख पड़ती है। क्योंकि कमरपट्टा, के अथवा धनवान् लोग अपने बाहुओं गलेका हार, कान छेदकर उनमें पहने हुए और कलाइयोंमें सोनके कङ्कण पहनते भूषण और बाहुओंके भूषण बहुत कुछ है।” इतिहास-कार स्ट्रेबो लिखता है कि एकहीसे है । हाँ, पैरों में न पुर पहनने- . “हिन्दुस्तानियोंकी वस्त्र-प्रावरण आदि का वर्णन होमरने नहीं किया । पश्चिमी बातों में यद्यपि बहुत ही सादगी है, तथापि देशीमें ठण्ढकी विशेषता हानकं कारण उन्हें गहने पहननेका बेढब शौक है। सारे पैर बैंकरहनको गति रही होगी और वे सुनहले कलाबत्तके कामके कपड़े और इससे पैरों के भूषणोंका उल्लेख न होगा। रत्नोंके गहने पहनते हैं । ऐसे महीन यहाँपर यह भी कह देना चाहिए कपड़े (चिकन) पहनते हैं जिन पर फल कि आजकल हिन्दुस्तानमें समस्त सौभा- कड़े होते हैं।" ग्यवती स्त्रियाँ नाकमें जो भृषण-नथ । पहनती हैं, उसका भारत या रामायणम । भासन । उल्लेख होनेका स्मरण नहीं । नहीं कह : अब अन्तमें यह देखना है कि महा- सकते, कदाचित् कहीं उल्लेग्व हो । किन्तु भारतकं समय नाना प्रकारके आसनोका उल्लेख न होनेसे ही यह नहीं कहा जा कैसा उपयोग होता था । यह तो स्पष्ट सकता कि महाभारतके समय नथ थी ही बात है कि उस समय आजकलकी नहीं; क्योंकि जहाँ उल्लेख होनेकी ही शर्त कुर्सियाँ न थीं । किन्तु प्राचीन कालमें हो वहाँ उल्लेख के न होनेका महत्त्व है। यह | मनुष्य सदा धरती पर न बैठते थे । महा- बात हम कई जगह लिख चुके हैं । दुसरे, भारतमें आसनोंका बहुत कुछ वर्णन है। महाभारतमें, स्त्रियोंके समग्र आभूषणों- ये आसन (पीठ ) चौकोर चौकियोंकी का वर्णन कही नहीं है। उपन्यासोंकी तरह तरह होते थे जिन पर हाथीदाँत और स्त्री-पुरुषोंका रत्ती रत्ती वर्णन महाभारत- सोनेकी नक्काशी की होती थी। राजा और में नहीं पाया जाता । अतएव, यह नहीं उनकी गनियाँ मञ्चक या पलंग पर माना जा सकता कि प्राचीन समयमें बैठती थी और ये पर्यक, पीढ़ोंकी अपेक्षा मथ नामक आभूषण था ही नहीं । लम्ब होने थे। श्रीकृष्ण जब कौरवोंकी