& महाभारतमीमांसा है और एक घोड़ेको गाड़ी में बैठना तो कारण यह नियम जारी हो गया। क्योंकि कोई चीज़ ही नहीं।" इस अन्तिम वाक्य- : एक स्थल पर महाभारतमें गदहाँको से जान पड़ता है कि संयुक्त प्रदेश और अस्पृश्य बतलाया है। इसमें सन्देह नहीं पजाबकी ओरके (वर्तमान) इक्के बहुत कि महाभारतके समय सामानकी गाड़ियाँ प्राचीन होंगे। ये इक्के श्राकारमें तो छोटे · वींचने में बैलोका उपयोग होता था। यह परन्तु होते रथ सरीखे ही हैं । अर्जुन, वर्णन है कि अश्वत्थामाके रथके पीछे भीष्म आदि और अन्य योद्धा जिन ग्थो बाणोंसे भरी हुई आठ आठ बैलोको में बैठते थे, वे चार घोड़ोंके ग्थ अाजकल गाड़ियाँ जा रही थीं। अन्यत्र कहा ही रग्गोचर नहीं होते। इस बातकी भी गया है कि चारण और बनजारे लोग कल्पना नहीं होती कि ये चार घोड़े किस बैलोसे लादनेका काम लेते थे। “गौर्वो- प्रकार जोते जाते थे-चारों पक ही पंक्ति- ढारं धावितारं तुरङ्गी"-यह प्रसिद्ध में अथवा दो आगे और दो उनके पीछे। श्लोक इसी बातका द्योतक है। लादनेके प्राचीन कालमें रथ खिंचवानेका काम काममें वैल पाते थे और गौएँ दृध देती गदहोंसे लिया जाता था और उन पर ' थी, इस कारण गजा लोग गौओंके झंड सवारी भी होती थी। हाँ, आजकल पालते थे । वनपर्वमें दुर्योधन अपनी उनका उपयोग निषिद्ध माना गया है। गौओंके समुदाय देखने गया था । उसका मादि पर्वमें पुरोचनने वारणावतको वर्णन बहुत मनोहर है । "उसने सब गाय- जानेके लिए कहा गया है कि गदहोंके ' बैलोको चिह्नित करा दिया और बड़ी रथमें बैठकर जानी। बड़ी बछियों और छोटे बछड़ोंको भी म त्वं गमभयुक्तेन म्यन्दनेनाशुगामिना। चिह्नित करा दिया। तीन वर्षकी अवस्था- वारणायतमद्यैव यथा यासि तथा कुरु ॥ के बैलोको अलग कर दिया ।" बोझ (आदि० अ० १४३) । लादनेके काममें इन बैलोका उपयोग यहाँ टीकाकारने कहा है कि गमभ बहुधा किया जाता था । यहाँ पर ग्वाला- खचर होंगे। किन्तु यह उनकी भूल है। ने गाकर और नाचकर तथा अपनी लड़- स्वञ्चरके लिये नो अश्वतरी स्वतन्त्र शब्द कियोंको अलङ्कार पहनाकर दुर्योधनके है और इस अर्थमें वह महाभारतमें भी आगे खेल करवाये। इस वर्णनसे तत्का- प्रयुक्त है। ‘स मृत्युमुपगृह्णाति गर्भमश्व- लीन शूहका चित्र, आजकलकी भाँति, तरी यथा । ( शां० अ० १४९-७०) आँखोंके आने खड़ा हो जाता है। फिर इन प्राचीन कालमें पाव और ईगनमें अच्छे गोपालोंने दुर्योधनको शिकार खिलाया । गदहे होते थे। टीकाकारको यह बात शिकार। मालम न थी और महाभारत तथा रामा- यणमें भी युधिष्ठिर और भरतको उत्तर शिकार खेलनेकी गति वैसी ही मोरके राजाओं द्वारा गदहे भेंट किये वर्णित है जैसी कि अाजकंल हिन्दुस्तानमें जानेका वर्णन है। भारती युद्ध के समय प्रचलित है। चारों ओरसे हाँका करके कदाचित् यह नियम न रहा होगा कि जानवरको मैदानकी ओर आनेके लिए गदहोको छूना न चाहिए और पजाबमें लाचार 'करनेकी रीति उस समय भी तो यह नियम अब भी नहीं है । दक्षिण प्राजकरलको ही भाँति थी। किन्तु मेगा- मोरके देशमें गदहे अच्छे नहीं होते, इस स्थिनीजने राजाओं (चन्द्रगुप्त) के शिकार-
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