- महाभारतके कर्ता
.महाभारतके तीन रचयिता होनेके जा सकता। हाँ, यह बात भी निश्चय-पूर्वक सम्बन्ध में दूसरा प्रमाण यह है कि महा- नहीं कही जा सकती कि वर्तमान महाभारत भारतका श्रारम्भ तीन स्थानोंसे होता में८८०० कूट श्लोक है। परन्तु जब इस बात है। इस बातका उल्लेख ग्रन्थमें ही पाया पर ध्यान दिया जाता है कि कभी कभी जाता है। "मन्वादि भारत केचित, पूरा श्लोक तो कूट नहीं होता, किन्तु आदि श्लोकों में कहा है कि मनु, श्रास्तिक एकाध पदमे ही ऐसा गूढार्थ होता है कि और उपरिचर ये तीन स्थान इस ग्रन्थ पूरै श्लोकका अर्थ समझ नहीं पाता, आरम्भ माने जाते हैं। राजा उपरिचरके तब कहना पड़ता है कि कट श्लोकोंकी प्रास्वानसे ( आदि पर्व अ० ६३ ) उक्त संख्या कुछ बहुत अधिक महीं है। व्यासके ग्रन्थका श्रारम्भ है। श्रास्तिक हम अपने भावको स्पष्ट रूपसे प्रकट आख्यान (आदि० अ०६३)से वैशंपायन- कर करनेके लिये यहाँ एक दो उदाहरण देते के ग्रन्थका प्रारम्भ है, क्योंकि वैशंपायन- है । विराट पर्व में "जित्वा वयम का ग्रन्थ सर्प-सत्रके समय पढ़ा गया था। नेष्यति चाद्य गाव" यह वाक्य कूट इसी लिये आस्तिककी कथाका श्रारम्भ- श्लोकका प्रसिद्ध उदाहरण है। यदि इसके मे कहा जाना आवश्यक था। यह समझना भिन्न भिन्न पद इस प्रकार किये जायें- स्वाभाविक है कि सौनिक बहत महा- जित्वा, अव, यं, नेप्यति, च, अद्य, भारत-ग्रन्थका श्रारम्भ मनु शब्दसे अर्थात गाः, वः-तभी इसका कुछ अर्थ लग प्रारम्भिक शब्द “वैवस्वत" से होता है। सकता है । ऐसे श्लोक श्रारम्भके पदों में अब इस बातका विचार करना चाहिये बहुत है, फिर आगे चलकर कुछ कम देख कि इन तीनों ग्रन्थोंका विस्तार कितना पड़ते है पड़ते हैं। तो भी इसमें सन्देह नहीं कि था । यह ठीक ठीक नहीं बनलाया | महाभारतमें गूढार्थके श्लोक बहुत हैं। जा सकता कि व्यासजीके मूल ग्रन्थ ऐसे श्लोकोंमें एकाध शब्द अप्रसिद्ध "जय" में कितने श्लोक थे। मैकडोनल्ड, अर्थमें व्यवहत किया गया है, जैसे वेबर आदि पाश्चात्य विद्वानोंका कथन "नागैरिव सरस्वती यहाँ सरस्वती - है कि उन श्लोकोंकी संख्या ८०० थी। सरस् +वती = सरोयुक्त इस अर्थमें है। परन्तु यह मत हमें प्राहा नहीं है, क्योंकि महाभारतमें ऐसे अनेक श्लोक हैं जिनके इसका समर्थन केवल तर्कके आधार पर शब्द तो सरल हैं परन्तु जो उक्त प्रकारसे किया गया है । सच बात तो यह है भिन्न और गूढ़ अर्थके द्योतक हैं । ऐसी कि महाभारतमें ८८०० संख्याका उल्लेख अवस्थामें यद्यपि कृट श्लोकोंकी संख्या व्यासजीके कूट श्लोकोके सम्बन्धमें हुआ ठीक ८८०० न हो, तथापि कहा जा सकता है। यह उल्लेख, सिर्फ खींचातानीसे ही, इस है कि इस संख्यामें थोड़ी अतिशयोक्ति बातका प्रमाण कहा जा सकता है कि मूल है। कुछ भी हो, इस श्लोकसे यह अनु- ग्रन्थमें श्लोकोंकी संख्या इतनी ही (अर्थात् | |मान नहीं किया जा सकता कि उक्त ८८००) होगी। इस उल्लेखके आधार पर संख्या व्यासजीके मूल प्रन्थकी ही है। सरल रीतिसे ऐसा अनुमान नहीं किया इसके अतिरिक्त एक बात और है । महा- भारतमें स्पष्ट उल्लेख है कि व्यासजीने अष्टौ श्लोकसहस्राणि अष्टौ श्लोकशतानि च । अहं रात-दिन परिश्रम करके तीन वर्ष में अपने मिशुको वेत्ति संजयो वेति वा न वा। ग्रन्थको पूरा किया। इससे यही माना