पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३३१

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  • राजकीय परिस्थिति ।

३०५ - जायँगे । सर्वत्र शून्याकार हो जायगा। हिन्दुस्थानमें प्राचीन कालमें ही राजसत्ता दुष्ट लोग अन्य जनोंके वाहन, वस्त्र और अधिक बलवान हो गई। अलंकार जबरदस्ती छीन लेंगे। धनवान ' राजाका देवता-स्वरूप। लोगोंको प्रति दिन हत्या और बन्धनका भय बना रहेगा। कोई किसीकी बात ___ 'महाभारत-कालमें अनियंत्रित राज- म मानेगा । लोग डाकू बन जायँगे। कृषि सत्ता पूरी तरहसे प्रस्थापित हो गई थी। और वाणिज्यका नाश हो जायगा। विवाह- | सब लोगोंमें यह मत प्रचलित हो गया का अस्तित्व नष्ट हो जायगा । धर्म और था कि राजाके शरीरको किसी तरहकी या नष्ट हो जायेंगे। चारों तरफ हाय हाय | हानि न पहुँचने पावे। यदि कोई मनुष्य मचेगी। विद्यावत-सम्पन्न बाटोका राजाके सम्बन्धमे अपने मनमें कुछ भी अध्ययन न करेंगे । सारांश, सब लोग पाप-भाव रस्नेगा, तो वह इस लोकमें भयसे व्याकुल होकर इधर उधर भागने क्लेश पाकर परलोकमें नरकका भागी लगेंगे । जबतक राजा प्रजाकी रक्षा होगा; यथा- करता है, तबतक लोग अपने घरोंके यस्तस्य पुरुषः पापं मनसाप्यनुचिंतयेत् । दरवाजे खुले रखकर निर्भय सोते | असंशयमिह क्लिष्टः प्रेन्यापि नरकं व्रजेत् ॥ हैं।" इस प्रकार अराजकताका वर्णन शांति पर्वका यह श्लोक भी प्रसिद्ध है- महाभारतमें अधिकतासे पाया आता है। ; नहि जात्ववमन्तव्यो मनुष्य इति भूमिपः । अतएव भारती कालमें इस बात पर महती देवता ह्येषा नररूपेण तिष्ठति ॥ विशेष जोर दिया जाता था कि हर एक "राजाको मनुष्य जानकर कोई कभी राज्यमें राजाका होना आवश्यक है। उसका अपमान न करे, क्योंकि मनुष्य- युधिष्ठिरने जब प्रश्न किया कि प्रजाका रूपसे वह एक देवता ही पृथ्वी पर मुख्य कर्तव्य क्या है, तब भीष्मने यही स्थित है।” जब राजा लोगोको दंड देता है, उत्तर दिया कि राजाका चुना जाना ही तब वह यमधर्मरूप है। जब यह पापी पहला उद्योग है। यह भी कहा गया है। लोगोंको सजा देता है, तब वह अग्नि-स्व- कि बाहरसे कोई बलवान राजा गज्यार्थी रूप है। जब वह पृथ्वी पर भ्रमण करके होकर आवे तो अराजक राष्ट्र उसका गएकी देख-भाल करता है, तब सूर्य- सहर्ष आदर करे, क्योंकि आराजकतासे स्वरूप है । जब वह अपकार करनेवाले बढ़कर दूसरी भयानक स्थिति नहीं है। लोगोंकी संपत्ति और रन छीनकर दसगेको देता है. तब वह कुबेर-स्वरूप है। अथ चेत अभिवर्तेत राज्यार्थी बलवत्तरः। मनप्य कभी राजद्रव्यका अपहार न अराजकानि राष्ट्राणि हतवीर्याणि वा पुनः॥ करे। जो अपहार करेगा वह इस लोक- प्रत्युद्गम्याभिपूज्यःस्यादेतदेव सुमंत्रितम । में और परलोकमें निंदित होगा।" सारांश नहि पापात् परतरमस्ति किंचिदराजकात्॥ यह है कि राजाओंका देवता स्वरूप महा- जबकि अराजकतासे परकीय राजा भारत-कालमें पूर्ण रीतिसे प्रस्थापित हो भला है, तब तो कहनेकी आवश्यकता गया था। और, गजाके सम्बन्धमें लोगोंके नहीं कि अपना स्वकीय अत्याचारी राजा मनमें पूज्य भाव इतना अधिक हो अराजकतासे बहुत ही अच्छा है। मालूम गया था कि राजाके शरीरको स्पर्श होता है कि अराजकताके भयके कारण करना भी महापानक समझा जाता था।