पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३३३

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  • राजकीय परिखिति । १

माधुनिक परिस्थितिका वर्णन दिया गया भिन्न कार्रवाई, उत्पात, आगे बढ़ना, पीछे है। महाभारतमें बतलाई हुई राजनीति हटना, शस्त्र, शस्त्रोंको उत्तेजित करना, बहुत प्राचीन है। बृहस्पतिका ग्रन्थ इस फौजको आनन्दित रखनेके उपाय, समय उपलब्ध नहीं । फिर भी शान्ति सैनिकोंका धैर्य बढ़ानेके प्रकार, दुन्दुभी- पर्वके उपर्युक्त अध्यायसं स्पष्ट मालम की ध्वनिसे प्रयाणादि बातें सूचित करखे- हो जाता है कि बृहस्पतिक ग्रन्थम कोन के नियम, युद्ध के भिन्न भिन्न मन्त्र, उनके कौन विषय थे। और इससे यह बात चलानेके नियम, श्रादि बातोंका वर्णन भली भाँति मालम हो जाती है कि दगड- है । दुश्मनोंके मुल्कमें जङ्गली लोगोंके नीतिमें कौन कोन विषय थे, तथा भारती- द्वारा किसी प्रान्तका विध्वंस कराना, कालमें प्रजा-शासन-शास्त्र कैसा था । इस · अाग लगा देना, या विष-प्रयोग करना, ग्रन्थमें सबसे पहले यह बतलाया है कि या भिन्न भिन्न वर्गोंके नेताओंको बह- मनुष्यका इतिकर्तव्य धर्म, अर्थ, काम काना, या अनाज वगैरह काटकर ले और मांक्ष है । दण्डनीतिम बतलाया गया जाना, हाथियोंको मस्त करा देना, है कि धर्म या नीतिकी रक्षा कैसे करना या भय-ग्रस्त करा देना, और दुश्मनोंके चाहिए । अर्थ-प्राप्तिकी गति मिग्वाने नोकगैमें दुश्मनी पैदा करना आदि बात वाला शास्त्र वार्ता नामसे प्रसिद्ध है। दगइनीतिमें वर्णित है । यह भी वर्णन है मोक्षका वर्णन करनवाल शास्त्रको आन्वी- कि गज्यकी उन्नति और अवनति किस क्षिकी कहते हैं। इन विभागांक अनन्तर प्रकार होती है। यह भी बतलाया है राजाके छः अङ्गा-मंत्रिवर्ग, जामृस, युव- कि मित्र राष्ट्रोंका उत्कर्ष किस रीतिसं राज श्रादि-के सम्बन्धी विचार किया करना चाहिए, प्रजाका न्याय कैसे करना गया है। इसके बाद यह विषय है कि चाहिए, चांगेको कैसे निर्मुल करना शत्रुके साथ साम, दान, दगड, भेद और । चाहिए., बलहीनोंकी रक्षा कैसे करनी उपक्षाकीरीतिसे केस व्यवहार किया जाना चाहिए, और बलवानीको ठीक समय पर चाहिए । इसमें सब प्रकारके गुप्त विचार, पारितोपिक कैसे दिया जाय । राजाओं शत्रुओंमें भेद करनके मंत्र, निकृष्ट, मध्यम और सेनापतियोंके गुण तथा दुराचारका और उत्तम संधि, दुसरं राज्य पर चढ़ाई, वर्णन करके कहा गया है कि वे अपने धर्म-विजय और प्रासुर-विजय, आदि दुराचारीको किस प्रकार छोड़ दें। बातोंका वर्णन किया गया है। अमात्य, नौकरोंके वेतनका भी वर्णन है। राजाके राष्ट्र, दुर्ग, बल और कोष नामक पाँच लिए कहा गया है कि वह प्रमाद और वौके लक्षण बतलाये गये हैं। सेनाके : संशय-वृत्तिका त्याग करे, जो द्रव्य प्राप्त वर्णनमें रथ, गज, अश्व, पदाति, विष्टि, ' न हो उसे प्राप्त करे, प्राप्तधनकी वृद्धि नौका, गुप्तदूत और उपदेशक आठ अङ्ग करें और बढ़ाये हुए धनका सत्पात्रको बताये गये हैं । जारण, मारणादि उपाय, दान कर, वह अपने श्राधे धनका उपयोग शत्रु, मित्र और उदासीनका वर्गान, भूमिका . धर्मके लिए करे, एक चतुर्थांश अपनी वर्णन, आत्म-संरक्षण, मनुष्य. गज, रथ इच्छाके अनुसार व्यय करे, और शेष और अश्वकी दृढ़ता तथा पुष्टताके अनेक चौथं हिस्सेको संकटके समय काममें उपाय, नाना प्रकारके न्युह, उन्यादि बानं लावे । यह भी कहा है कि राजा इन चार बतलाई गई है। युद्धकं समयकी भिन्न व्यसनीको छोड़ दे-मृगया, घृत, मध.