पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
  • राजकीय परिस्थिति। *

विशेषतः सत्य पर पूरा ध्यान दे, क्योंकि रवे । किसी प्रसङ्गमें धर्यको न छोड़े। कहा है-'यथा राजा नथा प्रजा'। यदि अच्छे श्राभूषण और वस्त्र पहनकर वह राजा सत्यको छोड़ देगा तो प्रजा भी प्रसन्नमुख हो सदा प्रजाको दर्शन दे। तुरन्त सत्यको छोड़ देगी। राजा हमेशा किसीके लिए मनाही न रहे । प्रजाकी उद्योग और परिश्रमका अवलम्ब करे। शिकायतों पर ध्यान दिया जाय । महा- जो राजा आलसी और अ-तत्पर रहता ' भारतका उपर्युक्त उपदेश बहुत ही है उसका सदैव नाश होता है। महा- 'मार्मिक है ।महाभारत-कालमेराजालोगों- भारतमें- . का व्यवहार ऐसा ही रहा करता था। राजानं चाविगेद्धारं ब्राह्मणं चाप्रवासिनम्। मुख्यतः पूर्व कालमें राजा कैसा ही क्यों न पृथिवीशप्यते राजन् सपो बिलशयानिव ॥ . हो, उसकी सत्यनिष्ठा, न्याय और उदा- यह प्रसिद्ध श्लोक है। इसमें वर्णित रताके सम्बन्धमै कभी किसीको सन्देह तत्व अत्यन्त महत्वका है और वह सब नहीं रहता था । प्रजाके साथ उसका देशोंके लिए सब कालमें उपयोगी है। प्रेम अपने निजके बचके समान रहता राजा हमेशा युद्ध करे और ब्राह्मण हमेशा ' था। फलतः प्राचीन कालमें गजा पर प्रयास करे, तभी पहलेकी शरता और प्रजाकी भक्ति भी अतिशय रहा करती दूसरेकी विद्वत्ता जाग्रत रह सकती थी। और, अपने राजाके प्रति, हिन्दु- है। राजा हमेशा मृदुभाषी और हँस- स्थानको प्रजाको भक्ति इस समय भी मुख रहे, पर बीच बीचमें वह अपना : प्रसिद्ध है। रोष और तीव्रता भी प्रकट किया करे। महाभारतके वन पर्वमें धौम्यके मुख- वह अपने पास विद्वान् लोगोंको एकत्र से इस बानका बहुन मार्मिक विवेचन करे । वह जोग्मे कभी न हम और कराया गया है कि राज-दरबारमें सेवकोंका न नौकगेंसे कभी ठट्टा करे । यदि गजा ' व्यवहार कैसा होना चाहिए। जब पागडव नौकरोंके साथ परिहास कग्नेकी श्रादत अज्ञातवासके लिए नौकर बनकर विगट डालेगा, तो नौकर उसका अपमान करने नगगेको जाने लगे, तब धौम्यने यह उप- लगेंगे और उसकी आमा न मानेंगे। देश दिया था:-"बिना द्वारपालकी सम्मति वह प्रजाको सदा सन्तुष्ट रग्ब और लिए गजाके पास नहीं जाना चाहिए। उसके कल्याणके लिए प्रयत्न करता रहे। किसीके भरोसे मत रहो । ऐसे स्थानमें यहाँगर्भिणीकी उपमा बहुत ही मार्मिक है। बैठी जहाँसे कोई न उठावे, जहाँ बैठनेसे जैसेगर्भवती स्त्री अपने सुखकी कल्पनाको किसीको कुछ सन्देह हो वहाँ न बैठना छोड़ अपने पेटके बच्चे के कल्याणकी सदा चाहिए : और जिसके साथ बातचीन चिन्ता करती है, वैसे ही गजा अपनी करनेसे किसीको कुछ सन्देह हो, उससे प्रजाके सुखकी चिन्ता करे । गजा किमी नहीं बोलना चाहिए । बिना पूछे गजासे दूसरेके धनका लोम न करे, और जिसे कुछ भी न कहना चाहिए । गजस्त्रियोंमे जो कुछ देना हो वह पूरा पूग और समय या गजद्विष्ट लोगोंसे सम्बन्ध नहीं रखना पर दे दिया जाय । जो पीडित या दुःखित चाहिए । यदि ऊँचे स्थानमें बैठना हो तो हो उनका पालन-पोषण गजा करे । गजाकी श्राशामे बैठना चाहिए । अग्निके वह किसी शर पुरुषका अपमान न करे। समान गजाको मेवा करनी चाहिए। वृद्ध और अनुभवी लोगोंसे मेल-मिलाप उमके बहुत समीप भी म जाना चाहिए