- महाभारतमीमांसा *
हराया यह हाथियोंकी सहायतासे प्राप्त की है कि अनाज सरकारी कोठीसे दिया हुई अन्तिम विजय थी। इसके पश्चात् जाता था। पहले बतला दिया गया है इतिहासमें हाथियोंका उपयोग नहीं देख कि किसानोंसे कर अनाजके रूपमें ही पड़ता। हाथियोंके स्थान पर अब तोप- लिया जाता था। रणमें मारे हुए वीरोंके खाना पा गया है। कुटुम्यो (स्त्रियों) का पालन-पोषण करना फौजके प्रत्येक आदमीको समय पर अच्छे राजाका कर्तव्य समझा जाता था। वेतन देनेकी व्यवस्था प्राचीन समयमें नारदने प्रश्न किया है किः- थी। यह वेतन कुछ तो अनाजके रूपमें | कश्चिदारान् मनुष्याणांतवार्थे मृत्युमीयुषाम्। और कुछ नकद द्रव्यके रूपमें दिया व्यसनं चाभ्युपेतानां बिभर्षि भरतर्षभ । जाता था । कश्चित् अध्यायमें नारदने सेनाके चारों अंगोंमें प्रत्येक दस युधिष्ठिरको उपदेश दिया है कि सिपा- मनुप्यों पर, सौ पर और हजार पर हियोको समय पर वेतन दिया जाय और एक एक अधिकारी रहा करता था- उसमेसे कुछ काट न लिया जाय। दशाधिपतयः कार्याः शताधिपतयस्तथा । कपिलस्य भक्तं च वेतनं च यथोचितम्। ततः सहस्राधिपतिं कुर्यात् शरमतंद्रितम् ॥ संप्राप्तकाले दातव्यं ददासि न विकर्षसि ॥ ___ (शान्ति पर्व अ० १००) (सभापर्व अ०५) इस प्रकारकी व्यवस्थाका होना अस- नारदने इस स्थान पर यह बतलाया म्भव नहीं है। ऐसी ही व्यवस्था आजकल है कि यदि सिपाहियोको समय पर वेतन भी प्रचलित है। एक हजार योद्धाओंका और अनाज न मिले तो सिपाहियोंमें सबसे मुख्य अधिकारी, कर्नलके दर्जेका अप्रबन्ध हो जाता है जिससे स्वामीकी | समझा जाता था । वह राजाके द्वारा भयानक हानि होती है। मरहठौके राज्य | सम्मानित होनेके योग्य समझा जाता था। में शिवाजीके समयसे लेकर नानासाहब कञ्चिद्वलस्य ते मुख्याः पेशवाके समयतक इस बातकी ओर सर्वे युद्धविशारदाः । अच्छी तरह ध्यान दिया जाता था। परन्तु धृष्टावदाता विक्रान्ताः इसके पश्चात् जब पतन-कालमें सेनाकी त्वया सत्कृत्य मानिताः ॥ तनख्वाह ठीक समय पर न दी जाने (स०अ०५) लगी, तभीसे अनेक भयङ्कर कठिनाइयाँ भिन्न भिन्न चारों अङ्गोंके भी एक एक उत्पन्न होने लगी। ये बातें सिंधिया, अधिकारी, जैसे अश्वाधिपति आदि रहते भोसला, होलकर आदिके इतिहासमें थे। इसके सिवा सव फौजमें एक मुख्य प्रसिद्ध ही हैं। पतन-कालमें ऐसे प्रसंग कमाण्डर-इन-चीफ अर्थात् सेनापति रहता सब राज्योंमें देखे जाते हैं । सेनाको था । उसका वर्णन इस प्रकार किया गया समय पर वेतन देना सुव्यवस्थित राज्य- है। नारदने पूछा है कि तेरा सेनापति का पहिला अंग है । इस बातका अन्दाज धृष्ट, शूर, बुद्धिमान् , शुचि, कुलीन, अनु- करनेके लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं | रक्त और दक्ष है न ? शान्ति पर्वमें यह है कि प्राचीन समयमें सेनाको क्या भी बतलाया गया है कि वह व्यूह, यन्त्र वेतन दिया जाता था; परन्तु इसमें और आयुधके शास्त्रको जाननेवाला हो। सन्देह नहीं कि वह अनाज और नकदके उसी प्रकार वर्षा, ठण्ड और गर्मी सहने- कपमें दिया जाता था। यह बात स्पष्ट ! की ताकत उसमें होनी चाहिए और उसे