पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३८८

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महाभारतमीमांसा
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मालूम होती है कि इस प्रकारका आचरण लिए शृंगाकार यंत्र भी थे। शहर में स्थान वे स्वयं अपने लोगोंके साथ भी किया स्थान पर गुल्मसंशक भाग पर चढ़े हुए करते थे। फिर इसमें आश्चर्य ही क्या है सैनिक शत्रुओं पर प्रहार करनेके लिए कि वे हिन्दुस्थानियोंके साथ इस प्रकारका तैयार थे । यह मुनादी कर दी गई थी प्राचरण करते हो। परन्तु यह सब कि कोई असावधान न रहे और मद्यपान बातें निंद्य हैं और वे भारती लोगोंके युद्ध- भी न करे । नगरीमें रहनेवाले आनन- में नहीं देख पडती थी। इस स्थानमें कहा ' देशवासी नट, नर्तक, गवैये बाहर गया है कि ऐसा व्यवहार दस्युओतकको भिजवा दिये गये। नौकाओंका आना- भी न करना चाहिए । इसमें सन्देह नहीं जाना बंद कर दिया गया। चारों ओर कि दस्यु यूनानी ही है । यूनानियोंने करता : एक कोसनक सुरंग लगा दी गई । और अधर्मकी युद्धपद्धति हिन्दुस्थानमें द्वारकाका किला स्वभावतः ही सुरक्षित पहलेपहल प्रचलित की: क्योंकि दस्युओं-: है: परन्तु गजाके मुहग्छापका अनुमतिपत्र का गुण-वर्णन इस प्रकार किया गया है:-: (पासपोर्ट) लिए बिना न कोई नगरीमें श्रा दस्यूनां सुलभा सेना रौद्रकर्मसु भारत। सकता था और न कोई बाहर जा सकता . था। सेनाको श्रायुध, द्रव्य और इनाम भी विमानों के द्वारा आक्रमण । दिये गये थे। किसी सिपाहीको सोने महाभारतमें विमानोंसे आक्रमण और चाँदीके सिक्कोंके सिवा दूसरा वेतन करनेका भी वर्णन आया है। जब शाल्व नहीं मिलता था और किलोका वेतन बाकी राजाने द्वारका पर चढ़ाई की थी, उस न रह गया था। शाल्वने नगरीको घेर समय उसने विमानोंसे द्वारकाके ऊपर : लेनेके सिवा सौभनगर अर्थात् विमानों में जाकर पत्थरों और वाणोकी वर्षा की बैठकर द्वारका पर चढ़ाई की। उस सौभ- थी। इस वर्णनके पढ़ने पर सौतिकी : नगरमें जो दैत्य बैठे थे वे शहर पर शस्त्र उक्तिका स्मरण हो पाता है कि ऐसा चलाने लगे। तब प्रद्युम्नने लोगोंको धैर्य कुछ नहीं जो महाभारतमें न हो।' यह दिया और उन सौभों पर बाणोंकी वर्षा प्रसंग उसी तरहका है जैसा गत युद्ध- की। फिर यथेष्ट संचार करनेवाले सौभ- में जर्मन विमानोंके द्वारा लंदन शहर पर नगरसे नीचे उतरकर शाल्व प्रद्युम्नसे युद्ध हो रहा था। वनपर्वके पंद्रहवें अध्यायमें करने लगा। शाल्व राजाका रथ मायासे द्वारकाकी तैयारीका वर्णन इस तरह । बनाया गया था और सोनेसे मढ़ा हुआ दिया गया है-"जब शाल्वने द्वारका पर था। इसके प्रागे वर्णन है कि जिस तरह माक्रमण किया उस समय नगरीसे सभी रथियोंमें हमेशा युद्ध होता है, उस तरह ओर इतने प्रायुध छोड़े गये कि कहीं शाल्व और प्रद्युम्नका इंद्वयुद्ध हुआ । छिन्तक दिखाई नहीं पड़ता था । यह सौभ विमान ही होगा। उसे दैत्योंने द्वारकामें स्थान स्थान पर शतघ्नी और यंत्र । बनाया था, इससे मालूम होता है कि वह लगाये गये थे। किलोके बों पर मोर्चे काल्पनिक होगा। परन्तु यह देखकर बाँध गये थे। शत्रुके द्वारा फेंके हुए तोप- आश्चर्य होता है कि पक्की दीवारों से घिरे के गोलोको मार गिरानेके लिए शक्ति-: हुए शहरों पर विमानोंसे चढ़ाई करनेकी संबक आयुध थे। वहाँ अग्नि-उत्पादक । कल्पना आज नई नहीं उत्पन्न हुई है- पदार्थोसे भरे हुए गोलोको चलानेके हजारों वर्षों की पुरानी है।