पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३९५

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  • व्यवहार और उद्योग-धन्ध । *

३६६ चावल, तिल, गेहूँ, ज्वार आदिका उल्लेख हो सकती हैं वे ऊपर दी गई है। हम । पहले बतला चुके हैं कि किसानोको सर- दश प्राम्यानि धान्यानि भवन्ति । कारकी ओरसे बीज मिलता था और बीहियवास्तिलमाषा । अणुप्रियंगवो गोधू- चार महीनोंकी जीविकाके लिए अनाज माश्च मसूराश्च खल्वाश्च खलकुलाश्च ॥ उसे मिलता था, जिसे आवश्यकता होती (तैत्तिरीय ब्राह्मण अध्याय =)-(इस थी। किसानोंको सरकार अथवा साह- फेहरिस्तमें चनेका उल्लेख नहीं है।) कारसे जो ऋण दिया जाता था, उसका खेतीकी रीति आजकलकी तरह थी। व्याज फी मैंकड़े एक रुपयेमे अधिक वर्षाके अभावके समय बड़े बड़े तालाब नहीं होता था। बनाकर लोगोंको पानी देना सरकारका खेतीके बाद दृमग महत्वका धंधा आवश्यक कर्तव्य समझा जाता था | गौरक्षाका था। जंगलोंमें गाय चगनेके नारदने युधिष्ठिरसे प्रश्न किया है कि- : खुले माधन रहनेके कारण यह धंधा खूब "तेरे राज्यमें खेती वर्षा पर तो अवलंबित चलता था । चारण लोगोंको बैलांकी नहीं है न ? तृने अपने राज्यमें योग्य बड़ी आवश्यकता होती थी, क्योंकि उस स्थानों में तालाब बनाये हैं न ?” यह बत- जमाने में माल लाने-ले जानेका सब काम लानेकी आवश्यकता नहीं कि पानी दिये बैलोमे होता था । गायके दूध-दहीकी हुए खेतोंकी फसल विशेष महत्वकी होती भी बड़ी आवश्यकता रहती थी। इसके थी। उस जमानेमें ऊख, नीलि (नील) सिवा, गायके सम्बन्धमें पूज्य बुद्धि रहने- अन्य वनस्पतियोंके रंगोंकी पैदावार के कारण सब लोग उन्हें अपने घरमें भी भी सींचे हुए खेतों में की जाती थी । अवश्य पालते थे। जय विराट राजाके (बाहरके इतिहासोंसे अनुमान होता है पाम महदेव तंतिपाल नामक ग्वाल. कि उस समय अफीमकी उत्पत्ति और खेती बनकर गया था, तब उसने अपने शानका नहीं होती रही होगी।) उस समय बड़े वर्णन इस तरहसे किया थाः- बड़े पेड़ों के बागीचे लगानेकी और विशेष क्षिप्रं च गावो बहुला भवंति । प्रवृत्ति थी और खासकर ऐसे बागीचोंमें न तासु रोगो भवतीह कश्चन ॥ आमके पेड़ लगाये जाते थे । जान पड़ता इससे मालूम होता है कि महाभारत- है कि उस समय थोड़े अर्थात् पाँच वर्षों- कालमें जानवरोंके बारेमें बहुत कुछ शान के समयमें अाम्र-वृक्षमें फल लगा लेनेकी रहा होगा। अजाविक अर्थात् बकरों-भेड़े- कला मालूम थी। का भी बड़ा प्रतिपालन होता था। उस घूतारामो यथाभग्नः पंचवर्षः फलोपगः। समय हाथी और घोड़ोंके सम्बन्धकी यह उदाहरण एक स्थान पर द्रोणपर्व- विद्याको भी लोग अच्छी तरह जानते में दिया गया है। 'फल लगे हए पाँच थे। जब नकल विराट राजाके पास वर्षके आमके बागीचेको जैसे भग्न करें। ग्रंथिक नामका चावुक-सवार बनकर इस उपमासे आजकलके छोटे छोटे कलमी गया था, तब उसने अपने शानका यह प्रामके बागीचोंकी कल्पना होती है। वर्णन किया था:- यह स्वाभाविक बात है कि महाभारतमें अश्वानां प्रकृति वेनि विनयं चापि खेतीके सम्बन्धमे थोड़ा ही उल्लेख हुना सर्वशः। दुष्टानां प्रतिपनि च कृत्स्नं च है। इसके आधार पर जो बातें मालम विचिकित्सितम् ॥