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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४०७

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8 व्यवहार और उद्योग-धन्धे । ॐ वैश्य ही थे। इन्हीं लोगोंमेसे आजकलके वर्णन महाभारतमें कई स्थानों पर पाया जाट और दक्षिणके कृषक मराठे भी हैं। है । इसीका नाम प्रस्थ था। शां० अ० ६० ये वैश्य, शूद्र दासोंकी मददसे, खेतोंके ) में कहा गया है कि दो सौ छप्पन मुष्टि- सब काम करते थे। आजकल वैश्या लोग का एक पूर्णपात्र होता है ।* इस तरह स्वयं खेतीका काम नहीं करते, इसलिए धान्यकी बड़ी तौल द्रोण था। यह नहीं यह धन्धा सबसे अधिक शूद्रोंके हाथों में बतलाया जा सकता कि द्रोणका और चला गया है। तथापि खेती करनेवाले आजकलके मनका कैसा सम्बन्ध है। ब्राह्मण और क्षत्रिय (अनुलोम वृत्तिके कौटिल्यका अर्थशास्त्र हालमें ही प्रकाशित द्वारा) अब भी उत्तर तथा दक्षिण देशोंमें हुआ है । उसमें वजन और तौल दिये पाये जाते हैं। हुए हैं । यद्यपि इनका उल्लेख महाभारतमें संघ। नहीं है, तथापि यह नहीं कहा जा सकता निश्चयपूर्वक मालम होता है कि महा- कि ये उस ज़माने में नहीं थे। यह मामूली भारत-कालमें व्यापारी वैश्यों तथा कारी- बात है कि प्रसङ्गके न पानेसे उल्लेख भी गरीका काम करनेवाले शद्रों अथवा मिश्र नहीं होता। जब कि सोना, चाँदी धातु- जातियों में कहीं कहीं संघकी व्यवस्था थी। का चलन था तब वजनकी छोटी तौल इन लोगोंके संघोंका नाम गण अथवा अवश्य ही होगी। रत्नोंकी बिक्री होनेके श्रेणी देख पड़ता है। इन गणोंके मखिया । कारण सूक्ष्मतर बाटोकी आवश्यकता भी होते थे। गजधर्म में कहा गया है कि इन अवश्य रही होगी। इसके सिवा बड़े लोगों पर कर लगाते समय श्रेणीको पदार्थोकी भी तौल थी और द्रोण अनकी मुखिया लोगोंको बुलाकर उनका सम्मान तोल था। युधिष्ठिरके यज्ञमें वर्णम है कि करना चाहिए। ऐसे संघोंको राजासे उत्तरके लोगोने द्रोणमेय सोना लाकर द्रव्य द्वारा सहायता मिलनेका प्रबन्ध दिया था। कदाचित् यह सुवर्णकणोंका था। कहा गया है कि राजा राएको TATA हो और द्रोण मापसे नापा गया हो। व्याजपर द्रव्य दे और राष्ट्रकी वृद्धि करे। लम्बाईके माप किष्क, धनुष्य, योजन प्राचीन शिलालेखोंमें ऐसे संघोंका उल्लेख श्रादि हैं। हाथकी उँगलियोंसे मालूम बहुत पाया जाता है। ये संघ बहुत बड़े होनेवाले ताल, वितस्ति आदि भिन्न भिन्न नहीं होते थे-ये राष्ट्रके, शहरके अथवा मापोंका भी उल्लेख महाभारतमें आया गाँवके एक ही धन्धेवाले लोगों के ही है (मासतालाभिः भेरीरकारयत्-सभा: होते थे और उनके मखिया नियत रहते थे। बारह वित्तोंके परिमाणसे भेरीबनाई गई)1 तौल और माप।

  • अष्टमुष्टिर्भवेत् किचित् किचिदष्टौ च पुष्कलम् ।

अब हम तौल और मापका विचार पुष्कलानि च चत्वारि पूर्ण पात्र प्रचक्षते॥ करेंगे। अनाजकी मुख्य तौल-मुष्टि-का। यह श्लोक टीकामें दिया हुआ है । (३८)