पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महाभारतके कर्ता करना ही इस सूत्रका प्रधान उद्देश्य है। ऐसी अवस्थामें, एक दृष्टिसे, उन भागोंका इस उद्देश्यकी सिद्धि के लिये प्रानुषंगिक कर्तृत्व भी व्यासजी को ही दिया जा रीतिले तत्त्वज्ञान, इतिहास, राजधर्म, सकता है। जिस प्रकार कुछ लोग अपने नीति आदि अनेक विषयोंका समावेश विशिष्ट मतोंको सिद्ध करने के लिये एकाध उसमें किया गया है। परिणाम यह हुआ प्रक्षिप्त भाग बीच में ही असम्बद्ध रीसिसे है कि महाभारत-प्रन्थ वर्तमान हिन्दू-धर्म- जोड़ देते हैं, उस प्रकारका सौतिका यह की सब शाखाओंके लिये, अर्थात् शैव, कार्य नहीं है। संक्षेपमें कहा जासकता है कि वैष्णव, वेदान्सी, योगी आदि सभी लोगों- सौतिके महाभारत-ग्रंथमें प्राचीन-सनातन- के लिये, समान भावसे पूज्य हो गया है। धर्मकं उदात्त स्वरूपका ही विशेष रूपसे इस महाभारतकी रचना व्यासजीको आविष्करण किया गया है और जो नये अप्रतिम मूल जयरूपी नींव पर की गई | भाग जोड़े गये हैं वे मूल प्रन्थ और है, इसलिये व्यासजीके अप्रतिम कवित्व, गाथाओंके ही आधार पर हैं। तत्वज्ञान और व्यवहार-निपुणताकीस्फूर्ति भी सौतिके लिये उत्साहजनक हो गई (१) धर्मकी एकता। है । उक्त विवेचनके आधार पर अब हम ___ भारतको महाभारत बनानेमें सौतिका इस बातका विचार करेंगे कि सोतिने प्रथम उद्देश्य यह था कि धमकी एकता अपने उद्देश्यकी सिद्धिके लिये भारतसे सिद्ध की जाय । यह अनुमान स्माईकि महाभारत कैसे बनाया। मल भारत-ग्रन्थमें श्रीकृष्णकी प्रशंसा आरंभमें यह कह देना चाहिये कि इस अर्थात् विष्णुकी स्तुति अधिक है, परंतु प्रकार विवेचन करना बहुत कठिन कार्य हिन्दू धर्ममें विष्णुके सिवा और भी अन्य है। हम पहले कह पाये हैं कि व्यासजीके देवता उपास्य माने जाते हैं । समस्त महा- मूल ग्रंथ और वैशम्पायनके भारतमें बहुत भारतको सनातनधर्म-ग्रन्थका सर्वमान्य अंतर न होगा । परन्तु भारतमें सिर्फ स्वरूप प्राप्त करा देनेके लिये इस बातकी २४००० श्लोक थे और महाभारतमें उनके अत्यन्त आवश्यकता थी कि उसमें अन्य स्थान पर एक लाख श्लोक हो गये हैं। तब देवताओंकी भी स्तुति हो, और वह भी हमें मानना पड़ता है कि यह अधिक ऐसी हो कि भिन्न भिन्न उपासनानोमें संख्या सौतिकी जोड़ी हुई है। परन्तु विरोध न बढ़ने पावे। इसी प्रधान दृष्टि से ऐसा मानते हुए भी, जिन ऐतिहासिक सौतिने महाभारतको वर्तमान स्वरूप दिया प्रमाणोंका उल्लेख ऊपर किये हुए विवेचन- है। विशेषतः वैष्णव और शैव मतोका एकी- में है, उनके अतिरिक्त और कोई दृढ़ करण उसने बहुत अच्छी तरह किया प्रमाण नहीं दिये जा सकते; इस विषय- है। प्रायः लोग प्रश्न किया करते हैं कि का विचार साधारण अनुमानसे ही किया शान्ति पर्व और अनुशासन पर्व मूलभारत- जा सकता है। सौतिने जिन भागोको अपने में थे या नहीं। हम पहले ही कह भाये हैं समयकी प्रचलित बातों और अनेक कि जो पर्व बहुत बड़े हैं वे मूल भारतके गाथाओंके आधार पर प्रथमें सम्मिलित नहीं हैं, इसलिये सिद्ध है कियेपर्व सौतिके कर दिया है, उनके संबंध यही मानना है। परन्तु इन पर्वो के विषय मूल भारतके चाहिये कि वे भाग व्यासजीके उदात्त ही है। हाँ धार्मिक दृष्टिसे सब मतोका मूल प्रन्यकी स्फूर्ति से ही जोड़े गये हैं। समावेश करने के लिये सौतिने इन पर्वोका