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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा *

करके यहाँ बतला देना कठिन है। यह शकके पूर्व पहिली सदी और महाभारत वहीं कहा जा सकता कि उन सबकी का समय शकके पूर्व तीसरी सदी है। रचना बिलकुल नये सिरसे की गई हो। इस कारणके सिवा इस उपाख्यानके ये सब कथाएँ प्राचीन हैं, उस समयके आन्तरिक प्रमाणोंसे भी यही बात सिद्ध लोगोंकी समझमें वे पहलेसे ही प्रचलित होती है । यह बात सब लोगोंकी समझमें थी और राष्ट्रीय भावोंके साथ उनका ' पा सकती है, कि ज्यों ज्यों समय अधिक घनिष्ट सम्बन्ध हो गया था, इसी लिये बीतता जाता है, त्यो त्यों किसी कथा- महाभारत जैसे राष्ट्रीय ग्रन्थमें उनका : भागमें अधिकाधिक असम्भव दन्तकथाओं- संग्रह किया जाना बहुत आवश्यक था।' की भर्ती होने लगती है। इसलिये यह ऐसी कथाओंके कुछ उदाहरण नीचे दिये साधारण प्रमाण माना जा सकता है, कि जाते हैं। .जिस कथाभागमें अलोकिक चमत्कारोंकी (१) षोड़श राजीय उपाख्यान होण-कमी है वह प्राचीन है। इस दृष्टिसे देखा पर्वमें है। यह एक प्राचीन आख्यान है। जाय तो मालूम होगा कि रामोपाख्यानके इसका मूल स्वरूप शतपथ ब्राह्मणमें देख कथाभागमें वर्तमान रामायणके कथा- पड़ता है। आर्यावर्त में अश्वमेध करनेवाले भागसे कम अलौकिक चमत्कार है। उदा- जो प्रसिद्ध राजाहो गये है, उनकी फेहरिस्त ! हरणार्थः-(१) पहिली बात यह है कि श्री- इसमें दी गई है और उनका उत्साहजनक रामचन्द्र के जन्मके लिये ऋष्यशद्वारा वर्णन भी इसमें किया गया है। सम्भव की हुई पुत्रेष्टिका वर्णन इस श्राख्यानमें है कि यह श्राख्यान मृल भारतमें भी हो: नहीं है । (२) गवण और कुबेरका सम्बन्ध परन्तु इस बातकी अधिक सम्भावना है | भिन्न रीतिसं बतलाया गया है । इस कि यह पीछेसे सौति द्वारा शतपथसे आख्यानमें कहा गया है कि दुन्दुभि लेकर जोड़ा गया हो। नामक गन्धर्व-स्त्री मन्थरा हो गई: परन्तु (२) रामायणकी पूरी कथा वन पर्वक श्राश्चर्य है कि रामायणमें यह बात नहीं रामोपाख्यानमें है। निस्सन्देह यह पर्व है। जटायुको भेटका वर्णन सरल और सौति द्वारा जोड़ा गया है, क्योंकि इतनं भिन्न रीतिसे दिया गया है । (३) जब श्री- बड़े उपाख्यानका मूल भारनमें होना रामचन्द्रजीने समुद्रके किनारे दर्भासन पर सम्भव नहीं। इस पूरे उपाख्यानको पढ़ते बैठकर समुद्रका चिन्तन किया, उस समय यह स्पष्ट जान पड़ता है कि इसमें समय समुद्रकी भेंट स्वप्नमें हुई, साक्षात् किसी अन्य प्रसिद्ध ग्रन्थका संक्षिप्त स्वरूप नहीं। (४) लक्ष्मणको शक्ति लगने और दिया गया है। महाभारतमें वाल्मीकिका हनुमान द्वारा द्रोणागिरिके लाये जानेकी स्पष्ट उल्लेख अन्य स्थानों में पाया जाता है: कथा इस आख्यानमें नहीं है । (५) कुम्भ- परन्तु जिस ग्रन्थका यह संक्षिप्त स्वरूप · कर्णको लक्ष्मणने मारा है। (६) इन्द्रजिस्को है वह ग्रन्थ वर्तमान वाल्मीकि रामायण भी उन्होंने मारा है; परन्तु इन्द्रजितके नहीं है, बल्कि निश्चयपूर्वक कहा जा अरश्य होनेवाले रथकी कथा, अर्थात् रथ- सकता है कि उसका पहलेका मूल स्वरूप की प्राप्तिके लिये कुम्मिलाका यज्ञ करने होगा। इसके कुछ कारण यहाँ बतलाये जानेकी कथा, इस अख्यानमें नहीं है। यहाँ जा सकते हैं। हम पहिले कह चुके हैं कि सबसे अधिक महत्त्वकी बात यह है कि वर्तमानाबमक-रामायण का समय ई० · रामने राषणको ब्रह्मास मारा: यह यह