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महाभारतमीमांसा
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काल के समय, सूर्योदय अथवा मूर्यास्तके उठे, तब माता-पिता और आचार्यको नाम- समय सूर्यका दर्शन करना चाहिए। यदि स्कार करे। अग्निकी सदैव पूजा करे। सर्पमें ग्रहण लगा होया वह मध्याह्नमें हो बिना तमती हुए स्त्रीले सम्भोगन तो उस वक्त उस ओर न देखे । सन्ध्या करे। उत्तर और पश्चिमकी आर सिर समय फिर सन्ध्या-वन्दन करे । सन्ध्या-करके न सोना चाहिए । ना होकर खान वन्दन करना कभी न भूले । निस्य सन्ध्या-न करे। पैरसे प्रासन खींचकर उस पर बम्दन करनेके कारण ही ऋषियोंको न बैठे। पूर्वकी भोर मँह करके भोजन न दीर्घायु प्राप्त हुई। किसी वर्णके मनुष्य- करे । भोजन करते समय बातचीत न करे। को पर-स्त्री-गमन न करना चाहिए। पर- अन्नकी निन्दा न करे । भोजनका थोड़ासा स्त्री-गमन करनेसे जिस प्रकार आयु अंश थालीमें पड़ा रहने दे। दूसरेका घटती है वैसी और किसी कर्मसे नहीं मानोदक या धोवन न ले । नीचे बैठकर घटती। पर-स्त्री-गमन करनेवाला हजारों- भोजन करे । चलता-फिरता हुआ भोजन न लाखों वर्षोंतक नरकमें रहता है। मल- करे। खड़ा होकर, भस्म पर, या गोशाला- मूत्रको ओर मनुष्य न देखे । बिना जान- में लघुशङ्का न करे । जूठी अथवा अशुद्ध पहचानके अथवा नीच कुलोत्पन्न मनुष्यके अवस्थामें सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रोंकी ओर साथ कहीं आवे-जाय नहीं । ब्राह्मण, गाय, न देखे । शानसे अथवा अवस्थासे वृद्ध राजा, वृद्ध, सिर पर बोझ लादे हुए पुरुष आवे, तो उठकर उनको नमस्कार मादमी, गर्भिणी स्त्री और दुबले मनुष्य ' करे। सिर्फ एक-वस्त्र होकर भोजन न रास्तेमें मिले, तो उन्हें पहले निकल जाने करे । नङ्गा होकर सोवे नहीं। बिना हाथ- दे, अर्थात् गस्ता छोड़ दे। दृसरेके बर्ने मुंह धोये, जूठा ही न बैठे। दोनों हाथोंमे दुए कपड़ों और जनोंका उपयोग न करें। खोपड़ी न बुलजावे । सूर्य, अग्नि, गाय पौर्णिमा, अमावस्या, चतुर्दशी और दोनों : अथवा ब्राह्मणोंको और मुंह करके, या पक्षोंकी अष्टमीको ब्रह्मचर्यका नित्य रास्ते पर, लघुशङ्का न करे। गुरूके साथ पालन करे । पराई निन्दा न करे । किसी-कभी हठ न करे । भोजनकी चीजोको को भी वाग्बाण न मारे। मनुष्यके मन यदि कोई और देख रहा हो, तो बिना पर दुष्ट शब्दोका घाव कुल्हाड़ीके घावसे उसे अर्पण किये अन्न ग्रहण न करे । भी बदकर लगता है । कुरूपको, जिसमें सुबहको और सन्ध्याको दो दफे भोजन कोई व्यङ्ग हो उसको, दरिद्रको, अथवा ! करे, बीचमे न करे । दिनको मैथन न करे। जो किसी प्रकारकी विद्या न जानते हो अविवाहित स्त्री, वेश्या और ऐसी स्त्री उनको धिक्कार न दे । नास्तिकपनको जिसे ऋतु प्राप्त न हुआ हो, इनके साथ स्वीकार न करे । वेदोंकी निन्दा न करे। भोग न करे । सन्ध्या-समय सोवे नहीं। देवताओंको धिक्कारे नहीं । मल-मूत्र रातको मान न करे। रातको भोजनमें त्यागने पर, रास्ता चलकर आने पर, अाग्रह न करे । बिना सिरसे नहाये विद्याका पाठ पढ़ते समय और भोजन पैतृक कर्म न करे । जिस तरह पर- करनेके पहले हाथ-पैर धो लेना चाहिए। निन्दा निषिद्ध है उसी तरह प्रात्म-निन्दा अपने लिए मधुर पदार्थ न बनावे, देव भी है। स्त्रियोंसे स्पर्धा न करे। बाल तामोंके लिए बनावे। सोकर उठने पर बनवाकर स्नान न करनेसे आयुका नाश दुबारा न सो जाय । जब सुबह सोकर होता है । सन्ध्या-समय विद्या पढ़ना,