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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/५०८

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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा

- यही क्यों, यदि चैतन्यकी शक्ति न होगी, हुए हैं। महाभारतमें भी ऐसे ही वर्णन तो देह ही उत्पन्न नहीं हो सकती।" प्रत्येक सत्यविषयके उपाख्यानमें पाये भारतीय आर्य तत्ववेत्ताओंका यह मत, जाते हैं। सच पूछिये तो आत्माका प्रम- किमात्मा शरीरसे भिन्न है, ग्रीक लोगो- रत्व सिद्ध करनेके लिए बहुत दूर जानेकी तक जा पहुँचा था। तथापि प्रीक लोगों- आवश्यकता नहीं है। जिस तर्कसे हमें में भी यह कहनेवाले लोग थे कि प्रात्मा यह मालूम होता है कि प्रात्मा शरीरसे नहीं है। ऐसे लोग भारतवर्ष में ऋग्वेद- भिन्न है, उसी तर्कसे यह बात भी सिद्ध कालसे हैं; और भारतीय तत्ववेत्ताओंने होती है कि आत्मा अमर है। मनुष्यके उनको नास्तिक कहकर उनका निषेध मरने पर देहमें कुछ भी गति नहीं किया है। रहती, इसीसे हम यह मानते हैं कि देह- के अतिरिक्त चैतन्य है और अब वह जीव अथवा प्रात्मा अमर है। शरीरसे बाहर चला गया, अर्थात् , यह भारती आर्योंके तत्वज्ञानियोंने जब बात निश्चयपूर्वक सिद्ध होती है कि मनुष्य यह सिद्धान्त निश्चित कर लिया कि के मरणके साथ आत्मा नहीं मरता । आत्मा भिन्न है, तब उन्हें एक और प्रश्न- ' इससे यही मानना पड़ता है कि, वह देह का विचार करना पड़ा। वह प्रश्न इस छोड़कर कहीं अन्यत्र चला जाता है। प्रकार है-शरीरकी तरह आत्मा नश्वर ! इसके अतिरिक्त, जब कि हम यह मानते है अथवा अमर है ? कितने ही तत्वज्ञानियों- है कि, जड़ सृष्टि और जड़ पदार्थ, अर्थात् का यह मत होना स्वाभाविक है कि, पञ्चमहाभूतोंका आत्यन्तिक नाश नहीं प्रात्मा शरीरके साथ ही मर जाता है। होता, तब फिर चैतन्य अथवा आत्माका परन्तु यह अत्यन्त उच्च सिद्धान्त, कि ही नाश कयों होना चाहिए ? जान पड़ता मात्मा अमर है, भारती तत्वज्ञानियों में है कि उपनिषत्कालमें इस प्रश्न विषयमें शीघ्र ही प्रस्थापित हो गया। भगवद्गीतामें, वादविवाद हुआ होगा। कठोपनिषदूमें प्रारम्भमें ही, यह तत्व बड़ी वक्तृत्वपूर्ण : यह वर्णन है कि नचिकेत जब यमके घर रीतिसे प्रतिपादित किया गया है कि, गया, तब उसने यमसे जो पहला प्रश्न श्रात्मा अमर है। इस प्रतिपादनमें भी किया, वह भी यही था । उसने पूछा कि अन्य मतोका कुछ अनुवाद किया गया 'येयं प्रेते विचिकित्सा मनुष्येस्तीत्येके है। "अथ चैनं नित्यजातं नित्यं वा मन्य- नायमस्तीति चान्ये' अर्थात् कुछ लोग से मृतम् ।” इस श्लोकमें कहा गया है कहते हैं कि मनुष्यके मर जाने पर भी कि तेरा ऐसा मन होगा कि, आत्मा यह आत्मा बना रहता है और कुछ लोम सदैव मरता और उत्पन्न होता है। परन्तु कहते हैं कि नहीं रहता, इसलिए आप यहाँ अन्तमें इसी सिद्धान्तका स्वीकार बनलावे कि इसमें सच्ची बात कौनसी है। किया है कि आत्मा अमर है। जैसे उस समय यमने कठोपनिषद् में प्रात्माकी "वासांसि जीर्णानि यथा विहाय' इत्यादि अमरता प्रतिपादित की है। प्रस्तु: लोकमें अथवा 'न जायते म्रियते वा कदा- नास्तिकोंके अतिरिक्त भारती पार्योके चित्' इस श्लोकमें बतलाया गया है। ! तत्वज्ञानियोंने यही स्वीकार किया है कि उपानषदोंमें प्रात्माके अमृतत्वके विषयमें आत्मा है और वह अमर है। परन्तु जगह जगह बहुत ही उदात्त वर्णन दिये प्रात्मा क्या पदार्थ है, इस विषयमें भिन्न