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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा *

गया है । प्रास्तिक मतवादियोंका मुख्य पुराण-इतिहास भी प्रमाण माने जाते थे। स्वरूप परमेश्वर अथवा परमात्माकी (शांति अ० ३४३) कई जगह वेदके अति- कल्पना है। और यह स्पष्ट है कि उसी रिक्त आगमोंको भी प्रमाण माना गया कल्पनाके अनुसार उनके जीवात्माकी है । तथापि जान पड़ता है कि, महाभारत- कल्पनाको भिन्न स्वरूप प्राप्त हुआ है। के लिए शब्दप्रमाण अर्थात् वेदप्रमाण बौद्ध और सांख्यमें भी परमात्माके विषय- मुख्य है। दूसरा प्रमाण, अनुमान बत- में, जान पड़ता है, विचार नहीं किया | लाया गया है। अनुगीतामें कहा है कि गया; और मुख्यतः इसी कारण उनको "अनुमानाद्विजानीमः पुरुषम्" । वेदोंका नास्तिकताका स्वरूप प्राप्त हुआ है। उल्लेख 'श्राम्नाय' शब्दसे किया गया है और यह स्वीकार किया गया है कि, भानायका प्रमाणस्वरूप। अर्थ अनुमानसे लगाना चाहिए । अर्थात् यहाँ इस विषयमें थोड़ासा विवेचन प्रमाणके मुख्य दो संघ हैं- अनुमान और करना आवश्यक है कि, प्रमाण क्या वस्तु आम्नाय (शां० प० अ० २०५) । इसके है। नास्तिक मतोंको वेदोका प्रमाण सिवा तीसग प्रमाण प्रत्यक्ष ही माना स्वीकार नहीं है। यही उनका भास्तिक मत-गया है। 'प्रत्यक्षतः साधपामः ऐसा भी से पहला बड़ा भेद है। वेदोंका प्रामाण्य | अनुम्मृतिमें कहा है। यह स्पष्ट है कि न माननेके कारण ही विशेषतः इन मतो- दोनों प्रमाण जिस समय नहीं हैं, उस को निन्द्यत्व प्राप्त हुआ है। वेदोंका प्रामागय | समय प्रत्यक्ष प्रमाणका महत्व स्वाभाविक भारतीय प्रायों में प्राचीन कालम ही स्वीकृत ही माना जाना चाहिए । इन तीन प्रमाणों- हो चुका था। तत्वज्ञानके विचारमै उप- के अतिरिक्त चौथे प्रमाण उपमानका भी निषदोंको प्रामागय प्राप्त हो चुका था । उल्लेख महाभारतमें एक जगह पाया है,वन- और कर्मके विषयमें मंहिता आदिको पर्ष अध्याय ३१ में द्रौपदीके भाषणके बाद प्रामाण्य मिल चुका था । स्वतंत्र विचार युधिष्ठिरने कहा है कि, आर्ष प्रमाण और करनेवाले बुद्धिमान् लोग इस विषयम | प्रत्यक्ष प्रमाणके अतिरिक्त तेरा जन्म एक वाद उपस्थित कर रहे थे कि, वेदोंको उपमानका प्रमाण है। फिर भी वास्तवमें प्रमाण क्यों माना जाय । महाभारतमें वेद, अनुमान और प्रत्यक्ष, इन्हीं प्रमाणों इस विषयका भी विचार है और वेदोंको पर विशेष जोर है। इसके अतिरिक्त यह प्रमाणोंमें अग्रस्थान दिया है। अनुशासन भी बतलाना चाहिए कि, वेदोंके प्रामाण्य पर्व अ० १२० में व्यास अन्तमें पूछते हैं पर यद्यपि महाभारतका जोर है, तथापि कि वेद झूठ क्यों कहेगा। अनुमानके प्रमाणको दबा डालनेका महा- ___ तर्कोप्रतिष्ठः श्रुतयश्च भिन्नाः नैको- भारतका कदापि प्राशय नहीं है । मतलब मुनिर्यस्यमतंप्रमाणम् । धर्मस्य सत्वं निहितं यह है कि, भारती आर्योंके तत्वज्ञानका गुहायां महाजनो येन गतः स पन्थाः॥ स्रोत शब्दप्रमाण पर ही कदापि नहीं ____ यह श्लोक महाभारतमें है (वनपर्ष रुका । अर्थात् वादी और प्रतिवादी दोनों- अध्याय ३१३) । परन्तु सम्पूर्णतया विचार | के लिए अनुमान और प्रत्यक्ष, यही दो करनेसे जान पड़ता है कि, महाभारत प्रमाण मुख्य रहते थे। कालमें वेदोंका प्रमाण पूर्ण माना गया परमेश्वर । था। जान पड़ता है, वेदोंके साथ साथ | अनुमान और प्रत्यक्ष प्रमाणसे जब