& महाभारतमीमांसा * तत्वोंका ही उल्लेख आता है। यही नहीं, भी एक भव्यक्त है और प्रकृति भी एक किन्तु पच्चीसवे तत्व पुरुषका जब उत्तम अव्यक्त है। दोनों क्षराक्षर है और दोनों- रीतिले परमेश्वरसे मेल न खाने लगा, के भी आगे रहनेवाला एक भिक तब महाभारतकारने परमात्माको पुरुष- तत्व है। लेभागे २६ वाँ तत्व भी मान लिया। द्वाविमौ पुरुषौ लोकेशरचाक्षर पवच। इसका दिग्दर्शन हमको शांति० अ० ३१६ इस श्लोकमें दोनोंको पुरुष कहकर में ही मिलता है। उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहतः। यदा स केवलीभूतः षड्विंशमनुपश्यति। इस श्लोकके अनुसार परमेश्वरको सदाससर्वविद् विद्वान् न पुनर्जन्म विंदते॥ पुरुषोत्तमकी संज्ञा दी है। इस संशामें इस श्लोकमें सांख्योंके पश्चीस तत्व सांख्योंका पुरुष आधारभूत लेकर उससे पूर्णतया गृहीत किये गये हैं। और सांख्य परमात्माकी एकवाक्यता करनेका प्रयत्न तथा वेदान्तकी इस प्रकारकी एकवाक्यता करते हुए, परमेश्वरको उससे भी श्रेष्ठ करनेका प्रयत्न किया गया है कि, परमेश्वर पदवी दी है। परब्रह्म अथवा परमात्मा- इन पञ्चीस तत्वोंके भी भागेका, अर्थात् २६ को एकवाक्यता सांख्योंके पुरुषसे वास्त- वाँ है । इस विषयमें भी कुछ गड़बड़ है विक रीतिसे नहीं हो सकती। कि.ये तत्व कौनसे हैं। पाँच गुग्ग, छठवाँ सृष्टि क्यों उत्पन्न हुई ? को TAT . मन अथवा चेतना, सातवीं बुद्धि, श्राठवाँ अहंकार, पाँच इन्द्रियाँ और जीव मिल- यह देखते हुए कि, तत्वज्ञानका विचार कर १४ और सत्व, रज, तम मिलकर भारतवर्ष में कैसा बढ़ता गया, हम यहाँ १७ । इन सत्रह वस्तुओंके समुदायको पर आ पहुंचे । अद्वैत वेदान्ती मानते हैं अव्यक्त संशा मिली है। इनमें पाँच महा- कि, निष्क्रिय अनादि परब्रह्मसे जड़ भूतोका समावेश नहीं है। उनका समावेश , चेतनात्मक सब सृष्टि उत्पन्न हुई, किन्तु करके आगेके श्लोकके अनुसार २२ होते हैं। कपिलके सांख्यानुसार पुरुषके सानिध्य- और व्यक्त अव्यक्त मिलकर २४ होते हैं; से प्रकृतिसे जड़-चेतनात्मक सृष्टि उत्पन्न तिस पर भी महाभारत में कुछ भिन्न हुई। अब, इसके आगे ऐसा प्रश्न उपस्थित सम्बन्ध दर्शाया है। सांख्योंकी सत्रह होता है कि, जो परब्रह्म अक्रिय है, उसमें और चौबीस संख्या यहाँ ब्याधने ली है। विकार उत्पन्न ही कैसे होते हैं ? अथवा परन्तु पदार्थोको तत्व नहीं कहा है, जब कि प्रकृति और पुरुषका सान्निध्य अथवा यह भी नहीं कहा है कि, यह सदेव ही है, तब भी सृष्टि कैसे उत्पन्न सांख्योंका मत है। होनी चाहिए ? तत्वज्ञानके इतिहासमें यह प्रश्न अत्यन्त कठिन है । एक ग्रन्थ- पुरुषोत्तम। कारके कथनानुसार, इस प्रश्नने सब जान पड़ता है कि सांख्योंकी सर्व- तत्वज्ञानियोंको सम्पूर्ण दार्शनिकोको- मान्यता भगवद्गीताके कालमें भी पूर्ण- कठिनाईमें डाल रखा है। जो लोग ज्ञान- नया प्रस्थापित हो चुकी थी। भगवद्- सम्पन्न चेतन परमेश्वरको मानते हैं, गीताने सांख्योंका पुरुष लेकर उसके भी अथवा जो लोग केवल जड़ स्वभाव प्रकृति- आगे जानेकी अपनी इच्छा भिन्न रीतिसे को मानते हैं, उन दोनोंके लिए भी यह व्यक्त की है। कहा है कि सांख्योका पुरुष प्रश्न समान ही कठिन है । नियोलेटो-
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