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महाभारतमीमांसा

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  • महाभारतमीमांसा *

इन्द्रिय, नर्वस सिस्टिम अथवा नाड़ीचक्र होता है। प्रात्मा यदि प्रत्यक्ष दिखाई नहीं और ब्रेन अथवा मस्तिष्ककेमार्गसे पदार्थ-देता, तथापि उसका अस्तित्व अस्वीकार का ज्ञान होता है। परन्तु यह बात पाश्चात्य नहीं किया जा सकता । महाभारतमें एक शारीरशास्त्र भी नहीं बनला सकता कि जगह आत्माका अस्तित्व बहुत ही सुन्दर मन क्या है। हाँ, यह व्याख्या की जा सकती गतिसे स्थापित किया गया है-"यह बात है कि, हृदय, मस्तिष्क अथवा नाड़ीचक्र नहीं है कि जो इन्द्रियोंके लिए अगोचर का विशेष धर्म मन है। है, वह बिलकुल है ही नहीं ; और यह भी नहीं कि जिसका ज्ञान नहीं होता, वह मात्माका स्वरूप। होता ही नहीं। आजतक हिमालयका भारतीय तत्वज्ञानियोंने भी यह बात दूसरा पहलू अथवा चन्द्रमण्डलका पृष्ठ स्वीकार की है कि, चित्त, मन अथवा भाग किसीने नहीं देखा: परन्तु इससे बुद्धि और पञ्चेन्द्रियाँ तथा पञ्चप्राण, ये यह थोड़े ही कहा जा सकता है कि, सब बातें जड़ अथवा अव्यक्त के ही भाग वे हैं ही नहीं। किंबहुना हम निश्चयपूर्वक हैं। इनमें अपनी निजकी किसी प्रकार- यही कहते हैं कि वे हैं । श्रान्मा अत्यन्त की चलनवलनात्मक शक्ति नहीं है । मूक्ष्म और ज्ञानस्वरूपी है। चन्द्रमण्डल इनके पीछे यदि जीव हो, तभी इनमें · पर हम कलङ्क देखते हैं, परन्तु यह हमारे चलनकी शक्ति होगी। जीव अथवा आत्मा । ध्यानमें नहीं आता कि, वह पृथ्वीका यदि न हो, तो ये सब वस्तुएँ निरुप. प्रतिबिम्ब है। इसी प्रकार यह बात भी योगी अथवा जड़ हैं । जबतक जीव है, महमा ध्यानमें नहीं पाती कि, प्रात्मा तभीतक इनकी क्रियाएँ होती हैं: और ईश्वरका प्रतिविम्य है। देखना अथवा न जहाँ जीव चला गया कि फिर बम, आँख देखना अस्तित्व अथवा अभावका लक्षण रहते हुए भी दिखाई नहीं देता। ऐसी नहीं है। यह हम अपनी बुद्धिमत्तासे दशामें सबसे महत्वका प्रश्न यही है कि, निश्चित कर सकते हैं, कि सूर्य में गति है। यह जीव क्या वस्तु है ? इसीप्रश्नके आस- इसी भाँति यह बात भी हम अपनी बुद्धि- पास सब देशो और सब समयोंके दार्श- मे निश्चयपूर्वक कह सकते हैं कि सूर्य निक अथवा तत्ववेत्ता चक्कर काट रहे हैं। अस्तसे उदयतक कहीं न कही रहता है। परन्तु अभीतक इसका पूरा पता नहीं जिस प्रकार हिरनकी सहायतासे हिरन, लगा । इस विषयमें तत्वज्ञानकी अत्यन्त अथवा हाथीकी सहायतामे हाथी और उच्च और उदात्त कल्पनाएँ हैं। प्रायः पक्षियों की सहायतासे पक्षी, पकड़ते हैं, सभीके मतसे, आत्मा है: यही नहीं, उसी प्रकार शेयकी सहायतासे शेयको किन्तु वह ईश्वरीय अंश है। प्रत्येकका जान सकते हैं। स्थूलदेह अथवा लिङ्ग- अहं विषयक अनुभव अर्थात् यह भावना शरीरमें रहनेवाला अमूर्त आत्मतत्व ज्ञान- कि मैं देखता हूँ, मैं सुनता है-यह बात ! से ही जाना जा सकता है। शरीरसे जब निश्चित रूपसे सिद्ध करता है कि, पश्चे- श्रान्मा अलग हो जाता है, तब अमावस्या- न्द्रिययुक्त देहका कोई न कोई अभिमानी के चन्द्रमाके समान वह अदृश्य होता है: देही अवश्य है । इन्द्रियोंको अपना निज- और चन्द्र जिस प्रकार दूसरे स्थानमें का शान कभी नहीं होता । परन्तु इन्द्रियों- जाकर फिर प्रकाशित होने लगता है, के पीछे रहनेवाले जीवको इन्द्रियोंका ज्ञान उसी प्रकार प्रात्मा दुसरे शरीरमें जाने