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महाभारतमीमांसा

30 & महाभारतमीमांसा * शान्ति पर्वके ३००३ अध्यायमें योगीके देता है। अब हम वेदान्तके इतिहासको अन्नका वर्णन किया है। वह जुआरके ओर झुकेंगे । कोंकी लप्सी या दलिया घी मिलाये (३) वेदान्त । बिना खाय । कुछ मास या सालतक यदि ___उपनिषदोंमें वेदान्तके तत्वज्ञानका योगी पानी मिलाया हुआ दूध पीये तो " प्रतिपादन विस्तृन गीतिसे किया है और उसे योगबलकी प्राप्ति होगी। सब यह स्पष्ट है कि उसके वैदिक होनेसे वह विकारोंको जीतकर, स्त्रीसंगके अभाव सारे सनातन जनसमाजको मान्य ही उत्पन्न होनेवाली तृष्णा, आलस्य और है। इस तत्वज्ञानके मुख्य मुख्य अंग उप- निद्राको त्यागकर “ ध्यानाध्ययनस- निषदोंमें बतलाये गये हैं, इसीसे इसे म्पदा" (ध्यान और अध्ययन जिसकी :: वेदान्त नाम मिला है। यह नाम भगव- सम्पत्ति है ऐसा) योगी आत्माको उद्दी- गीताके "वेदान्तकृत" वाक्य में आया है। पित करता है। अर्थात उपर्युक्त अन्न : 'महाभारतमें वेदान्तका अर्थ उपनिषत् या मनोविकारों पर जय मिलनेके लिए ही 'भारण्यक भी होता है। हमारी रायमे बतलाया गया है । भगवद्गीताक 'युक्ता- वेदवाद शब्दसे कर्मवादका अर्थात् हारविहारस्य" वचनोसे इसका कुछ : संहिताके भागोंमें वर्णित यज्ञादि भागका विरोध है, तथापि वह योगीके तपकी बोध होता है, और वेदान्त शब्दका अर्थ भागेकी सोढ़ी है। उपनिषन-तत्वज्ञान है। "जपविधि वेदान्त- ___ योगग्रन्थों में (नाना शास्त्रोंमें) बताये विचारों से है या योगमेसे है या कमे- हुए रास्तेसे जानेवाला ब्राह्मण इच्छा , कागडोंमेंसे है। इस वाक्यमें यह अर्थ नुसार ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि देवोंके १ स्पष्ट है। भीमके उत्तरमें वेदान्त शब्दका या पितर, उरग, यक्ष, गन्धर्व, पुरुष या 'यही अर्थ है। भीष्मका उत्तर यह है कि स्त्रियोंके रूपमें प्रवेश कर सकता है और : उसके बाहर निकल सकता है और र वेदान्तमें जपके सम्बन्धका मुख्य विधान - यह है कि 'त्याग करो' । जप कर्म है: उसमें नारायणके समान संकल्पसे सृष्टि वेदान्तकी दृष्टि में वह त्याज्य है। सारे वेद- उत्पन्न करनेका सामर्थ्य आता है। ____ जान पड़ता है कि महाभारत काल में वचनोंका सार ब्रह्म है।" और विवेचनोंमें योगके ग्रन्थ थे। उनमेंसे सौतिने ज्ञान भी वेदान्त शब्द इसी अर्थमें आया है। लेकर अपने महाभारतमें रख दिया है संन्यास एव वेदान्ते वर्त्तते जपनं प्रति । और सांख्य तथा वेदान्तके साथ योग- - वेदवादाश्च निर्वृत्ताःशान्ताब्रह्मण्यवखिताः॥ शास्त्रका समन्वय किया है। एक ओर . इसमें वेदवाद शब्द वेदवचनके अर्थ में उसने योगमें सांख्यके तत्व शामिल किराया है परन्तु वह मूलतः कर्मकाण्डके है और दूसरी ओर यह बतलाया कि सम्बन्धका ही है। भगवद्गीताके वेद. योगियोंकी भी ध्येय वस्तु परब्रह्म ही है। वादरताः पाथे नान्यदस्तीति वा- सौतिने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया दिन" वाक्यमें वेदवादका अर्थ कर्म- है कि सांख्य और योग दोनोंके जानने- वाद है । वेदमें अर्थात् संहितामोमें वाले वेदान्तीके उपदेशानुसार ब्रह्मगतिको (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेदमें) मुख्यतः कर्म- ही पहुँचते हैं। महाभारतके कालतक का ही प्रतिपादन है और कहीं कहीं ब्रह्मका योगशास्त्रका इतिहास इस प्रकार दिखाई भी है। परन्तु उपनिषद्में ब्रह्मका भी है,