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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा

- पर्वके अन्तमें जोड़ा हुश्रा यक्ष-प्रश्न नामक सौतिने उद्योगपर्व में जिस विश्वरूपदर्शन बाख्यान है। सौतिने इस आख्यानकी को स्थान दिया है वह अप्रासङ्गिक देख रचना नहुष-प्रश्न (वनपर्व अध्याय १६५) पड़ता है और उसका परिणाम भी दुर्यो- के ढंग पर की है। इसमें भी युधिष्ठिर धन तथा धृतराष्ट्रके मनपर कुछ नहीं द्वारा उसके भाईके मुक्त किये जानेकी हुआ। कथा है। ऐसा अनुमान करनेके लिये : कि इस यक्ष-प्रश्न-उपास्यानको सौतिने (८) भावष्य कथन । पीछेसे जोड़ा है, कई कारण दिये जा' ग्रन्थकारोंकी यह एक साधारण युक्ति सकते हैं। पहला कारण-जब कि सह- है कि वे आगे होनेवाली बातोंको पहिले देव, अर्जुन और भीमने प्रत्यक्ष देख लिया ' ही भविष्यरूपसे बतला देते हैं अथवा था कि उनके पूर्वके मनुष्यकी कैसी दशा उनके सम्बन्धमे पहिले ही कुछ विचार हुई, और जब कि यक्ष उन लोगोंको स्पष्ट । सुझा देते हैं। इस प्रकारके कुछ भविष्य- रूपसे सावधान कर रहा था, तब क्या कथन पीछेसे सौतिके जोड़े हुए मालूम यह सचमुच श्राश्चर्यकी बात नहीं है कि होते हैं । उदाहरणार्थ, स्त्रोपर्वमें गान्धारी- वे भी सरोवरका पानी पीकर मर जायें ? ने श्रीकृष्णको यह शाप दिया है कि तुम दूसरा कारण-यक्षके प्रश्न भी पहेलियोंके सब यादव लोग आपसमें लड़कर मर समान देख पडते हैं। वे किसी महा- जाओगे। ऐसे शाप प्रायः सब स्थानोंमें कषिके लिये शोभादायक नहीं हैं। तीमग पाये जाते हैं। कर्णको यह शाप था कि कारण-प्रश्नोत्तरके अन्त में यक्षने युधिष्ठिर उसके रथका पहिया युद्धके समय गड्ढे में से कहा है कि तुम अपने अज्ञातवासके गिर पड़ेगा । यह कहा जा सकता है कि दिन विराट-नगरमें बिनाओ: इतना हो ये सब शाप प्रायः पीछेसे कल्पित किये जानेपर भी अगले पर्वके श्रारम्भमें कहा गये हैं। उद्योगपर्वके श्राठवें अध्यायमें गया है कि अज्ञातवासके दिन बितानेके शल्य और युधिष्ठिरका जो संवाद है, वह सम्बन्धमे युधिष्ठिरको बड़ो चिन्ता हुई। इस बातका दूसरा उदाहरण है कि इन चौथा कारण-कथामें कहा गया है कि शापोंके बिना ही आगे होनेवाली बातोंकी युधिष्ठिरने सब ब्राह्मणोंको विदा करके पूर्व-कल्पना चमत्कारिक रीतिसे की गई केवल धौम्यको अपने पास रख लिया। थी। शल्यको दुर्योधनने सन्तुष्ट करके ऐसा होनेपर भी, विराटपर्वके श्रारम्भ- अपने पक्षमें कर लिया था। जब यह में, हम देखते हैं कि युधिष्ठिरके पास सब समाचार शल्यसे मालूम हुआ, तब ब्राह्मण मौजूद है। सारांश, यही जान युधिष्ठिरने विनती की कि-"जब आप पड़ता है कि यक्ष-प्रश्न-उपाख्यान मूल । कर्ण और अर्जुनके युद्ध के समय कर्णके भारतमें न था: वह पीछेसे सौति द्वारा सारथी हों, उस समय कर्णका तेजोभङ्गकर जोड़ दिया गया है। अनुकरणका दूसरा दीजिएगा।" शल्यने उत्तर दिया,-"जब उदाहरण उद्योगपर्वमें वर्णित विश्वरूप- मुझे कर्णका सारथ्य करना पड़ेगा तब मैं दर्शन है। भगवद्गीतामें जो विश्वरूप- उसका उत्साह भङ्ग करूँगा और उस दर्शन है वह वहाँ उचित स्थानमें दिया समय तुम उसे मार सकोगे।" इन बातो- गया है और वह व्यासजीके मूल भारतका की कल्पना पहिले ही कैसे की जा सकती अंश है । परन्तु उसीके अनुकरणपर है कि भीष्म और द्रोण दोनों मर जायँगे,