- भिन्न मतोंका इतिहास। *
५३५ दायक है या भगवान्का। गीताके बार. चर्य चरन्ति' पक्ष यद्यपि विशेष कहा हवं अध्यायमें यह कहा है कि अव्यक्तकी गया है, तथापि “अर्वन्नेवेह कर्माणि उपासना अधिक क्लेशदायक है। इसमें जिजीविषेच्छतं समाः तेन त्यक्तेन श्रीकृष्णने जो सगुण उपासनाका बीज बतलाया है वह आगे कैसे बढ़ा, इसका भुञ्जीथाः" श्रादि पक्ष उपनिषद्में हैं। विस्तारपूर्वक विचार हम पांचगत्र हमारी राय है कि भगवनीतामें इसी मतमें करना है। परन्तु यहाँ यह बत- मार्गके अधिष्ठानका कर्मयोग द्वारा मज- लाना आवश्यक है कि श्रीकृष्णने यहाँ वृत करने के लिए मुख्यतः कहा गया है। कुछ विशिष्ट मत प्रस्थापित नहीं किया। यह कहते कहते इस अलौकिक तत्वज्ञान- उपनिषदोंमें भी ब्रह्मके ध्यानके लिए के ग्रन्थमें सांख्य, योग और वेदान्तका ओंकार या सूर्य या गायत्री मन्त्र आदि भी समावेश किया गया है। इसमें पहले- प्रतीक लेनेका नियम बतलाया है : उसीके पहल उपदेशित भक्तिमार्गका और अन्य समान या उससे कुछ अधिक यानी भिन्न विषयों का भी समावेश है, परन्तु वे भिन्न विभृतियाँ, विभूति अध्यायमें, बत- मुख्य वर्य विषय नहीं हैं। इस कर्मयोगके लाई गई हैं। उनमें यह कहा है कि सम्बन्धमे यहाँ अधिक न लिखकर वृष्णीनाम् वासुदेवोऽस्मि एक विभूति श्रागे भगवद्गीता-प्रकरणमें विस्तारपूर्वक है और रुद्राणां शंकरश्चास्मि दूसरी लि लिखेंगे । लोकमान्य तिलकने उसका सम्पूर्ण विचार किया ही है । यद्यपि हमें विभूति है। अर्थात् यह मानना पड़ेगा। उनके सभी मत मान्य नहीं हैं, तथापि कि भगवदीनामें 'मैं' शब्दसे सगुण ब्रह्म- यहाँ इतना कहना अलं होगा कि उनका की एक कल्पना की है । इसीसे भग- यह मत सर्वथैव मान्य है कि भगवद्गीता- बद्रीता भी सर्व सामान्य उपासकोंके लिए का मुख्य विषय कर्मयोग ही है। वहीं समान पूजनीय हुई है। श्रीकृष्णका मुख्य उपदेश है और उसी- क्षेत्रक्षेत्रसज्ञान, त्रिगुणोंका सिद्धान्त, की परम्परा सगुण ब्रह्मकी कल्पना और तदनुरूप इमं विवम्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् । भक्तियोगका चौथा (सांख्य, योग और विनस्वानमनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥ वेदान्तके अतिरिक्त) मोक्षमार्ग उपनि- षदोंकी अपेक्षा भगवद्गीतामें तो विशेष प्रादि श्लोकोंमें बताई गई है। यह पर. ही, परन्तु उपनिषदोंकी अपेक्षा उसमें प कर्मयोगके सिद्धान्तकी भी विशेषता है। - र अब यह देखना आवश्यक है कि भीम- ऐसा नहीं है कि यह मार्ग उपनिषदोंमें स्तवमे वेदान्तकी स्तुति कौनसे शब्दों में की है। जैसे भीष्मस्तवसे योग और सांख्य- न हो । यह सच है कि उपनिषदोंका की जोर संन्यास पर है: तथापि हम समझते की प्राचीन कल्पना हमारे सन्मुख उप- हैं कि उसमें भी निष्काम कर्मपच है, : . स्थित होती है, वैसे ही उससे वेदान्त तत्वकी प्राचीन कल्पना भी हमारे सन्मुख और इसी लिए भगवद्गीताने उपनिषद्के निस्सन्देह उपस्थित हो जायगी। भीष्म- प्रथमतः मुख्य दिखाई देनेवाले मार्गका स्तवमें वेदान्त या उपनिषत् शब्द नहीं विरोध किया है । "पुषणायाश्च है। परन्तु मालूम होता है कि योग- बोषणायाश्च व्युत्थायाथ मिचा- स्वरूपके पश्चात्के ही श्लोकमें वेदान्तके