३४० ® महाभारतमीमांसा ® - - की भिन्न व्युत्पत्ति करनेवाले सूत्रोंसे में पड़े रहनेतक कृष्ण-वर्ण होता है। वहाँ- दिखाई देता है कि यही प्रतिपादित हुआ से हरित (धूम्र)। इसके अनन्तर सत्व- था कि ब्राह्मणको ही और विशेषतः गुणसे युक्त होने पर नीलमेंसे निकलकर संन्याश्रमीको ही मोक्षकी प्राप्ति होती है। लाल रङ्ग होता है और जीव मनुष्य- ___ शान्ति पर्वके २७८वें अध्यायमें हारी- लोकको आता है। पीला रङ्ग मिलने पर तोक्तमोक्ष-ज्ञान बतलाया गया है। उसमें देवत्व मिलता है। फिर जब सत्वाधिक्य संन्यास-धर्मका विस्तारपूर्वक वर्णन करके होता है तब उसे शुक्लवर्ण मिलता है (नहीं अम्तमें यह कहा है कि- तो वह नीचे गिरता हुमा कृष्ण रातक अभयं सर्वभूतेभ्यो दत्वा यः प्रव्रजेद्गृहात्। जाता है)। शुक्ल गतिमेसे यदि वह पीछे न लोकास्तेजोमयास्तस्य तथानंत्याय कल्पते। गिरा और योग्य मार्गसे चला गया तो महाभारत-कालमें प्रव्रज्या ही मोक्ष- गत श्लोकमें कहा है कि-"ततोऽध्ययं की प्रणाली मान्य हुई दिखाई देता है। स्थानमनंतमेति देवस्य विष्णोरथ क्योंकि बौद्धों तथा जैनोंने भी अपने मोक्ष- ब्रह्मणश्च ।” “संहारकाले परिदग्ध मार्गके लिए इसी प्रव्रज्याके मार्गको काया ब्रह्माणमायान्ति सदा प्रजा मान्य किया है। महाभारत कालमें प्रव्रज्या- का महत्व बहुत बढ़ा हुआ दिखाई देता ह" सव सहारक समय ऐसा दिखाई है। विस्तारपूर्वक अन्यत्र कहा ही गया देता है, कि उसका ब्रह्मसे तादात्म्य है कि सनातनधर्मियोंकी प्रव्रज्या बहुत होता है ।* प्रखर थी। बौद्धों तथा जैनोंने प्रव्रज्या-. उपर्युक्त वर्णनसे यह भी देख पड़ता को बहुत हीन कर डाला और वह पेट है कि महाभारत-कालमें परमगतिकी भरनेका धन्धा हो गया । एक समय कल्पना कुछ भिन्न थी। उपनिषदमें भी युधिष्ठिरको संन्यासकी अत्यन्त लालसा हुई और उसने पूछा-"कदा वयं करि- - यहा युधिष्ठिर ने दी विचित्र प्रश्न किये है। उनके उत्तर प्यामः संन्यासं दुःखसंज्ञकं । कदा वयं | भी विचित्र है । पहला प्रश्न-"जिस महादेवका सन- कुमारनं वर्णन किया है, क्या यह वही हमारा श्रीकृष्ण गमिष्यामो राज्यं हित्वा परंतप ॥" इस है ?" उत्तर-यह वह नहीं है । "तुरीयाद्धेन- प्रश्न पर भीष्मने सनत्सुजात और वृत्रका तस्येमं विद्धि केशवमच्युतं" इसके विषयमें संवाद सुनाया। यह कहते कहते, कि | आगे उल्लेख करेंगे। दूसरा प्रश्न-हम इस समय जीव संसारमें करोड़ों वर्षतक कैसे परि- रक्त वर्ण में है; परन्तु आगे हमारी क्या गति होगी, नील या भ्रमण कृष्ण या अच्छी । भीष्मने उत्तर दिया-तुम पाण्डव कि जीवन देवलोकको जाओगे और फिर “विहृत्य देवलोकेषु पुनर्मा- मील, नुषमेष्यथ । प्रजाविसर्ग च सुखेन काले प्रत्येत्य देवेषु २५०-३३) । वर्णकी यह कल्पना विचित्र सुखानि भुक्त्वा । सुखेन संयास्यथ सिद्धसंख्या मा वो भयं है। हर एक वर्णकी चौदह लाख योनियाँ भूद्धिमलाःस्थ सर्वे" ॥७७ (शां० भ० २८०) । अर्थात् "तुम फिर मनुष्य लोकको आयोगे और मनुष्य लोकमे . पूर्ण सुख भोगकर फिर देव योनिको जाओगे और वहाँसे देशह परागतिर्जीवगुणस्य दैत्य- सिद्ध-मण्डलीमें जानोगे । सिद्ध-मण्डलीमें जाओगे।" इस वाक्यसे यह जाननेकी ३६) । भिन्न भिन्न रङ्गों से पुनः पुनः इच्छा होती है, कि महाभारत-कालके इतिहासमें पाएडवों- का फिर कौनसा अवतार माना जाता था ? क्या वत्सराज ऊपर नीचे भी संसरण होता है। नरक- 'उदयनमे तो तात्पर्य नहीं है ?
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